उप॒ ज्मन्नुप॑ वेत॒सेऽव॑तर न॒दीष्वा। अग्ने॑ पि॒त्तम॒पाम॑सि॒ मण्डू॑कि॒ ताभि॒राग॑हि॒ सेमं नो॑ य॒ज्ञं पा॑व॒कव॑र्णꣳ शि॒वं कृ॑धि ॥६ ॥
उप॑। ज्मन्। उप॑। वे॒त॒से। अव॑। त॒र॒। न॒दीषु॑। आ। अग्ने॑। पि॒त्तम्। अ॒पाम्। अ॒सि॒। मण्डू॑कि। ताभिः॑। आ। ग॒हि॒। सा। इ॒मम्। नः॒। य॒ज्ञम्। पा॒व॒कव॑र्ण॒मिति॑ पाव॒कऽव॑र्णम्। शि॒वम्। कृ॒धि॒ ॥६ ॥
हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब स्त्री-पुरुष आपस में कैसे वर्त्तें, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ दम्पती कथं वर्त्तेयातामित्युपदिश्यते ॥
(उप) (ज्मन्) ज्मनि भूमौ। अत्र सुपां सुलुग्० [अष्टा०७.१.३९] इति सप्तम्येकवचनस्य लुक्। ज्मेति पृथिवीनामसु पठितम् ॥ (निघं०१.१) (उप) (वेतसे) पदार्थविस्तारे (अव) (तर) (नदीषु) (आ) (अग्ने) वह्निरिव तेजस्विनि विदुषि ! (पित्तम्) तेजः (अपाम्) प्राणानां जलानां वा (असि) अस्ति (मण्डूकि) सुभूषिते (ताभिः) अद्भिः प्राणैर्वा (आ) (गहि) आगच्छ (सा) (इमम्) (नः) अस्माकम् (यज्ञम्) गृहाश्रमाख्यम् (पावकवर्णम्) अग्निवत् प्रकाशमानम् (शिवम्) कल्याणकारकम् (कृधि) कुरु ॥६ ॥