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वि॒मान॑ऽए॒ष दि॒वो मध्य॑ऽआस्तऽआपप्रि॒वान् रोद॑सीऽअ॒न्तरि॑क्षम्। स वि॒श्वाची॑र॒भिच॑ष्टे घृ॒ताची॑रन्त॒रा पूर्व॒मप॑रं च के॒तुम् ॥५९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वि॒मान॒ इति॑ वि॒ऽमानः॑। ए॒षः। दि॒वः। मध्ये॑। आ॒स्ते॒। आ॒प॒प्रि॒वानित्या॑ऽपप्रि॒वान्। रोद॑सी॒ इति॒ रोद॑सी। अ॒न्तरि॑क्षम्। सः। वि॒श्वाचीः॑। अ॒भि। च॒ष्टे॒। घृ॒ताचीः॑। अ॒न्त॒रा। पूर्व॑म्। अप॑रम्। च॒। के॒तुम् ॥५९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:17» मन्त्र:59


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब ईश्वर ने किसलिये सूर्य का निर्माण किया है, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - विद्यावान् पुरुष जो (एषः) यह सूर्य्यमण्डल (दिवः) प्रकाश के (मध्ये) बीच में (विमानः) विमान अर्थात् जो आकाशादि मार्गों में आश्चर्य्यरूप से चलनेहारा है, उसके समान और (रोदसी) प्रकाश-भूमि और (अन्तरिक्षम्) अवकाश को (आपप्रिवान्) अपने तेज से व्याप्त हुआ (आस्ते) स्थिर हो रहा है, (सः) वह (विश्वाचीः) जो संसार को प्राप्त होती अर्थात् अपने उदय से प्रकाशित करतीं वा (घृताचीः) जल को प्राप्त कराती हैं, उन अपनी द्युतियों अर्थात् प्रकाशों को विस्तृत करता है, (पूर्वम्) आगे दिन (अपरम्) पीछे रात्रि (च) और (अन्तरा) दोनों के बीच में (केतुम्) सब लोकों के प्रकाशक तेज को (अभिचष्टे) देखता है, उसे जाने ॥५९ ॥
भावार्थभाषाः - जो सूर्य्यलोक ब्रह्माण्ड के बीच स्थित हुआ अपने प्रकाश से सब को व्याप्त हो रहा है, वह सब का अच्छा आकर्षण करनेवाला है, ऐसा मनुष्यों को जानना चाहिये ॥५९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथेश्वरेण किमर्थः सूर्यो निर्मित इत्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

(विमानः) विमानमिव स्थितः (एषः) सूर्यः (दिवः) प्रकाशस्य (मध्ये) (आस्ते) तिष्ठति (आपप्रिवान्) स्वतेजसा व्याप्तवान् (रोदसी) प्रकाशभूमी (अन्तरिक्षम्) अवकाशम् (सः) (विश्वाचीः) या विश्वमञ्चन्ति प्राप्नुवन्ति ता द्युतीः (अभि) (चष्टे) पश्यति। चष्ट इति पश्यतिकर्मा ॥ (निघं०३.११) (घृताचीः) या घृतमुदकमञ्चन्ति ताः (अन्तरा) द्वयोर्मध्ये (पूर्वम्) (अपरम्) (च) (केतुम्) प्रज्ञापकं तेजः ॥५९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - विद्वान् य एष दिवो मध्ये विमानो रोदसी अन्तरिक्षमापप्रिवान् सन्नास्ते, स विश्वाचीर्घृताचीर्द्युती- र्विस्तारयति, पूर्वमपरमन्तरा च केतुमभिचष्टे, तं विजानीयात् ॥५९ ॥
भावार्थभाषाः - यः सूर्यलोको ब्रह्माण्डमध्ये स्थितः सन् स्वप्रकाशेन सर्वमभिव्याप्नोति, स सर्वाभिकर्षको वर्त्तत इति मनुष्यैर्वेद्यम् ॥५९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - सूर्य ब्रह्मांडामध्ये स्थिर असून आपल्या प्रकाशाने सर्वत्र व्याप्त आहे. तो सर्वांचे आकर्षण करतो हे माणसांनी जाणले पाहिजे.