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वी॒तꣳ ह॒विः श॑मि॒तꣳ श॑मि॒ता य॒जध्यै॑ तु॒रीयो॑ य॒ज्ञो यत्र॑ ह॒व्यमेति॑। ततो॑ वा॒काऽआ॒शिषो॑ नो जुषन्ताम् ॥५७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वी॒तम्। ह॒विः। श॒मि॒तम्। श॒मि॒ता। य॒जध्यै॑। तु॒रीयः॑। य॒ज्ञः। यत्र॑। ह॒व्यम्। एति॑। ततः॑। वा॒काः। आ॒शिष॒ इत्या॒ऽऽशिषः॑। नः॒। जु॒ष॒न्ता॒म् ॥५७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:17» मन्त्र:57


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (शमिता) शान्ति आदि गुणों से युक्त गृहाश्रमी (यजध्यै) यज्ञ करने के लिये (वीतम्) गमनशील (शमितम्) दुर्गुणों की शान्ति करनेवाले (हविः) होम करने योग्य पदार्थ को अग्नि में छोड़ता है जो (तुरीयः) चौथा (यज्ञः) प्राप्त करने योग्य यज्ञ है तथा (यत्र) जहाँ (हव्यम्) होम करने योग्य पदार्थ (एति) प्राप्त होता है (ततः) उन सबों से (वाकाः) जो कही जाती हैं, वे (आशिषः) इच्छासिद्धि (नः) हम लोगों को (जुषन्ताम्) सेवन करें, ऐसी इच्छा करो ॥५७ ॥
भावार्थभाषाः - अग्निहोत्र आदि यज्ञ में चार पदार्थ होते हैं अर्थात् बहुत-सा पुष्टि, सुगन्धि, मिष्ट और रोग विनाश करनेवाला होम का पदार्थ, उसका शोधन, यज्ञ का करनेवाला तथा वेदी, आग, लकड़ी आदि। यथाविधि से हवन किया हुआ पदार्थ आकाश को जाकर फिर वहाँ से पवन वा जल के द्वारा आकर इच्छा की सिद्धि करनेवाला होता है, ऐसा मनुष्य को जानना चाहिये ॥५७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(वीतम्) गमनशीलम् (हविः) होतव्यम् (शमितम्) उपशान्तम् (शमिता) उपशमादिगुणयुक्ता (यजध्यै) यष्टुम् (तुरीयः) चतुर्थः (यज्ञः) संगन्तव्यः (यत्र) (हव्यम्) (एति) गच्छति (ततः) तस्मात् (वाकाः) उच्यन्ते यास्ताः (आशिषः) इच्छासिद्धयः (नः) अस्मान् (जुषन्ताम्) सेवन्ताम् ॥५७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यः शमिता यजध्यै वीतं शमितं हविरग्नौ प्रक्षिपति, यस्तुरीयो यज्ञोऽस्ति, यत्र हव्यमेति, ततो वाका आशिषश्च नो जुषन्तामितीच्छत ॥५७ ॥
भावार्थभाषाः - अग्निहोत्रादौ चत्वारः पदार्थाः सन्ति पुष्कलं पुष्टिसुगन्धिमिष्टगुणयुक्तं रोगनाशकं हविः, तच्छोधनं, यज्ञकर्त्ता, वेद्यग्न्यादिकं चेति। यथावद्धुतः पदार्थ आकाशं गत्वा पुनरावृत्येष्टसाधको भवतीति मनुष्यैर्मन्तव्यम् ॥५७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - अग्निहोत्र इत्यादी यज्ञामध्ये चार पदार्थ असतात. पुष्कळसे पुष्टिकारक, सुगंधी, मधुर, रोगनाशक होमाचे पदार्थ, त्यांची शुद्धी, यज्ञ करणारा याज्ञिक आणि वेदी, अग्नी समिधा इत्यादी. हवनातील पदार्थ, आकाशात जाऊन तेथून वायू व जलाद्वारे इच्छापूर्ती करतात हे माणसांनी जाणावे.