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प॒रो दि॒वा प॒रऽए॒ना पृ॑थि॒व्या प॒रो दे॒वेभि॒रसु॑रै॒र्यदस्ति॑। कꣳस्वि॒द् गर्भं॑ प्रथ॒मं द॑ध्र॒ऽआपो॒ यत्र॑ दे॒वाः स॒मप॑श्यन्त॒ पूर्वे॑ ॥२९ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प॒रः। दि॒वा। प॒रः। ए॒ना। पृ॒थि॒व्या। प॒रः। दे॒वेभिः॑। असु॑रैः। यत्। अस्ति॑। कम्। स्वि॒त्। गर्भ॑म्। प्र॒थ॒मम्। द॒ध्रे॒। आपः॑। यत्र॑। दे॒वाः। स॒मप॑श्य॒न्तेति॑ स॒म्ऽअप॑श्यन्त। पूर्वे॑ ॥२९ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:17» मन्त्र:29


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी उसी विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो (एना) इस (दिवा) सूर्य्य आदि लोकों से (परः) परे अर्थात् अत्युत्तम (पृथिव्या) पृथिवी आदि लोकों से (परः) परे (देवेभिः) विद्वान् वा दिव्य प्रकाशित प्रजाओं और (असुरैः) अविद्वान् तथा कालरूप प्रजाओं से (परः) परे (अस्ति) है, (यत्र) जिसमें (आपः) प्राण (कम्, स्वित्) किसी (प्रथमम्) विस्तृत (गर्भम्) ग्रहण करने योग्य पदार्थ को (दध्रे) धारण करते हुए वा (यत्) जिसको (पूर्वे) पूर्णविद्या के अध्ययन करनेवाले (देवाः) विद्वान् लोग (समपश्यन्त) अच्छे प्रकार ज्ञानचक्षु से देखते हैं, वह ब्रह्म है, यह तुम लोग जानो ॥२९ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि जो सब से सूक्ष्म, बड़ा, अतिश्रेष्ठ, सब का धारणकर्त्ता, विद्वानों का विषय अर्थात् समस्त विद्याओं का समाधानरूप अनादि और चेतनमात्र है, वही ब्रह्म उपासना करने के योग्य है, अन्य नहीं ॥२९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(परः) प्रकृष्टः (दिवा) सूर्यादिना (परः) (एना) एनया (पृथिव्या) (परः) (देवेभिः) विद्वद्भिर्दिव्याभिः प्रकाशयुक्ताभिः प्रजाभिर्वा (असुरैः) अविद्वद्भिः, अन्तकरूपाभिः प्रजाभिर्वा (यत्) (अस्ति) (कम्) (स्वित्) (गर्भम्) ग्रहीतुं योग्यं वस्तु (प्रथमम्) विस्तृतम् (दध्रे) दधिरे (आपः) प्राणाः (यत्र) (देवाः) विद्वांसो जनाः (समपश्यन्त) सम्यक् पश्यन्ति (पूर्वे) अधीतपूर्णविद्याः ॥२९ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! य एना दिवा परः पृथिव्या परो देवेभिरसुरैः परोऽस्ति, यत्रापः कं स्वित् प्रथमं गर्भं दध्रे, यत्पूर्वे देवाः समपश्यन्त, तद्ब्रह्मेति यूयं विजानीत ॥२९ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्यत् सर्वेभ्यः सूक्ष्मं महत् परं सर्वधर्तृविद्वद्विषयमनादिचेतनमस्ति, तदेव ब्रह्मोपासनीयं नेतरत् ॥२९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - सर्वात सूक्ष्म व स्थूल, अतिश्रेष्ठ, सर्वांचा धारणकर्ता, सर्व विद्वानांचा विषय अर्थात् सर्व विद्यांचे निराकरण ज्याच्या ठायी आढळते असा अनादी व चेतन असा एकच ब्रह्म उपासना करण्यायोग्य आहे, अन्य नव्हे. हे माणसांनी जाणावे.