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ये वृ॒क्षेषु॑ श॒ष्पिञ्ज॑रा॒ नील॑ग्रीवा॒ विलो॑हिताः। तेषा॑ सहस्रयोज॒नेऽव॒ धन्वा॑नि तन्मसि ॥५८ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ये। वृ॒क्षेषु॑। श॒ष्पिञ्ज॑राः। नील॑ग्रीवा॒ इति॒ नील॑ऽग्रीवाः। विलो॑हिता॒ इति॒ विऽलो॑हिताः। तेषा॑म्। स॒ह॒स्र॒यो॒ज॒न इति॑ सहस्रऽयोज॒ने। अव॑। धन्वा॑नि। त॒न्म॒सि॒ ॥५८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:16» मन्त्र:58


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्य लोग सर्पादि दुष्टों का निवारण करें, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे हम लोग (ये) जो (वृक्षेषु) आम्रादि वृक्षों में (शष्पिञ्जराः) रूप दिखाने से भय के हेतु (नीलग्रीवाः) नीली ग्रीवा युक्त काट खानेवाले (विलोहिताः) अनेक प्रकार के काले आदि वर्णों से युक्त सर्प आदि हिंसक जीव हैं (तेषाम्) उन के (सहस्रयोजने) असंख्य योजन देश में निकाल देने के लिये (धन्वानि) धनुषों को (अवतन्मसि) विस्तृत करें, वैसा आचरण तुम लोग भी करो ॥५८ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को योग्य है कि जो वृक्षादि में वृद्धि से जीनेवाले सर्प हैं, उन का भी यथाशक्ति निवारण करें ॥५८ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यैः सर्पादयो दुष्टा निवारणीया इत्याह ॥

अन्वय:

(ये) (वृक्षेषु) आम्रादिसमीपेषु (शष्पिञ्जराः) शड्ढिंसकः पिञ्जरो वर्णो येषां ते (नीलग्रीवाः) नीलवर्णा निगरणकर्मोपेताः (विलोहिताः) विविधरक्तवर्णास्तेषामिति पूर्ववत् ॥५८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यथा वयं ये वृक्षेषु शष्पिञ्जरा नीलग्रीवा विलोहिताः सर्पादयः सन्ति, तेषां सहस्रयोजने प्रक्षेपाय धन्वान्यवतन्मसि, तथा यूयमप्याचरत ॥५८ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्ये वृक्षादिषु वृद्धिजीवनाः सर्पादयो वर्तन्ते, तेऽपि यथासामर्थ्यं निवारणीयाः ॥५८ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी वृक्षांवर राहणाऱ्या साप वगैरेंचा नाश करावा.