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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
राजपुरुषों को क्या करना चाहिये, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे (भगवः) भाग्यशील सेनापते ! जो (तव) आपके (बाह्वोः) भुजाओं की सबन्धिनी (सहस्राणि) असंख्य (हेतयः) वज्रों की प्रबल गति हैं (तासाम्) उनके (ईशानः) स्वामीपन को प्राप्त आप (सहस्रशः) हजारहों शत्रुओं के (मुखा) मुख (पराचीना) पीछे फेर के दूर (कृधि) कीजिये ॥५३ ॥
भावार्थभाषाः - राजपुरुषों को उचित है कि बाहुबल से राज्य को प्राप्त हो और असंख्य शूरवीर पुरुषों की सेनाओं को रख के सब शत्रुओं के मुख फेरें ॥५३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
राजजनैः किं कार्यमित्याह ॥
अन्वय:
(सहस्राणि) (सहस्रशः) असंख्याताः (बाह्वोः) भुजयोः सम्बन्धिन्यः (तव) (हेतयः) प्रबला वज्रगतयः (तासाम्) (ईशानः) ईशनशीलः (भगवः) भाग्यवन् (पराचीना) पराचीनानि दूरीभूतानि (मुखा) मुखानि (कृधि) कुरु ॥५३ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे भगवः ! यास्तव बाह्वोः सहस्राणि हेतयः सन्ति, तासामीशानः सन् सहस्रशः शत्रूणां मुखा पराचीना कृधि ॥५३ ॥
भावार्थभाषाः - राजपुरुषैः बाहुबलेन राज्यं प्राप्यासंख्यशूरवीराः सेनाः संपाद्य सर्वे शत्रवः पराङ्मुखाः कार्याः ॥५३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - राजपुरुषांनी आपल्या बलाने राज्य प्राप्त करावे, असंख्य शूर वीर पुरुषांची सेना बाळगावी व सर्व शत्रूंचा पराभव करावा.