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नमः॑ प॒र्णाय॑ च पर्णश॒दाय॑ च॒ नम॑ऽउद्गु॒रमा॑णाय चाभिघ्न॒ते च॒ नम॑ऽआखिद॒ते च॑ प्रखिद॒ते च॒ नम॑ऽइषु॒कृद्भ्यो॑ धनु॒ष्कृद्भ्य॑श्च वो॒ नमो॒ नमो॑ वः किरि॒केभ्यो॑ दे॒वाना॒ हृद॑येभ्यो॒ नमो॑ विचिन्व॒त्केभ्यो॒ नमो॑ विक्षिण॒त्केभ्यो॒ नम॑ऽआनिर्ह॒तेभ्यः॑ ॥४६ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नमः॑। प॒र्णाय॑। च॒। प॒र्ण॒श॒दायेति॑ पर्णऽश॒दाय॑। च॒। नमः॑। उ॒द्गु॒रमा॑णा॒येत्यु॑त्ऽगु॒रमा॑णाय। च॒। अ॒भि॒घ्न॒त इत्य॑भिऽघ्न॒ते। च॒। नमः॑। आ॒खि॒द॒त इत्या॑ऽखि॒द॒ते। च॒। प्र॒खि॒द॒त इति॑ प्रऽखिद॒ते। च॒। नमः॑। इ॒षु॒कृद्भ्य॒ इती॑षु॒कृत्ऽभ्यः॑। ध॒नु॒ष्कृद्भ्यः॑। ध॒नुः॒ऽकृद्भ्य॒ इति॑ धनुः॒कृत्ऽभ्यः॑। च॒। वः॒। नमः॑। नमः॑। वः॒। कि॒रि॒केभ्यः॑। दे॒वाना॑म्। हृद॑येभ्यः। नमः॑। वि॒चि॒न्व॒त्केभ्य॒ इति॑ विऽचिन्व॒त्केभ्यः॑। नमः॑। वि॒क्षि॒ण॒त्केभ्य॒ इति॑ विऽक्षिण॒त्केभ्यः॑। नमः॑। आ॒नि॒र्ह॒तेभ्य॒ इत्या॑निःऽह॒तेभ्यः॑ ॥४६ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:16» मन्त्र:46


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वही विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो मनुष्य (पर्णाय) प्रत्युपकार से रक्षक को (च) और (पर्णशदाय) पत्तों को काटनेवाले को (च) भी (नमः) अन्न (उद्गुरमाणाय) उत्तम प्रकार से उद्यम करने (च) और (अभिघ्नते) सन्मुख होके दुष्टों को मारनेवाले को (च) भी (नमः) अन्न देवें (आखिदते) दीन निर्धन (च) और (प्रखिदते) अतिदरिद्री जन का (च) भी (नमः) सत्कार करें (इषुकृद्भ्यः) बाणों को बनानेवाले को (नमः) अन्नादि देवें (च) और (धनुष्कृद्भ्यः) धनुष् बनानेवाले (वः) तुम लोगों का (नमः) सत्कार करें (देवानाम्) विद्वानों को (हृदयेभ्यः) अपने आत्मा के समान प्रिय (किरिकेभ्यः) बाण आदि शस्त्र फेंकनेवाले (वः) तुम लोगों को (नमः) अन्नादि देवें (विचिन्वत्केभ्यः) शुभ गुणों वा पदार्थों का सञ्चय करनेवालों का (नमः) सत्कार (विक्षिणत्केभ्यः) शत्रुओं के नाशक जनों का (नमः) सत्कार और (आनिर्हतेभ्यः) अच्छे प्रकार पराजय को प्राप्त हुए लोगों का (नमः) सत्कार करें, वे सब ओर से धनी होते हैं ॥४६ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि सब ओषधियों से अन्नादि उत्तम पदार्थों का ग्रहण कर अनाथ मनुष्यादि प्राणियों को देके सब को आनन्दित करें ॥४६ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तदेवाह ॥

अन्वय:

(नमः) अन्नम् (पर्णाय) यः प्रतिपालयति तस्मै (च) (पर्णशदाय) यः पर्णानि शीयते छिनत्ति तस्मै (च) (नमः) (उद्गुरमाणाय) य उत्कृष्टतया गुरत उद्यच्छत्युद्यमं करोति तस्मै (च) (अभिघ्नते) य आभिमुख्येन हन्ति तस्मै (च) (नमः) सत्करणम् (आखिदते) आसमन्ताद् दीनायैश्वर्योपक्षीणाय (च) (प्रखिदते) प्रकृष्टतया क्षीणाय (च) (नमः) अन्नादिदानम् (इषुकृद्भ्यः) बाणनिर्मापकेभ्यः (धनुष्कृद्भ्यः) धनुषां निर्मातृभ्यः (च) (वः) युष्मभ्यम् (नमः) मान्यम् (नमः) अन्नादिदानम् (वः) युष्मभ्यम् (किरिकेभ्यः) विक्षेपकेभ्यः (देवानाम्) विदुषाम् (हृदयेभ्यः) हृद्यवद्वर्त्तमानेभ्यः (नमः) सत्करणम् (विचिन्वत्केभ्यः) ये विचिन्वन्ति तेभ्यः (नमः) सत्कारम् (विक्षिणत्केभ्यः) ये शत्रून् विक्षयन्ति तेभ्यः (नमः) सत्कारम् (आनिर्हतेभ्यः) ये समन्तान्निर्हतास्तेभ्यः ॥४६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - ये मनुष्याः पर्णाय च पर्णशदाय च नम उद्गुरमाणाय चाभिघ्नते च नम आखिदते च प्रखिदते च नम इषुकृद्भ्यो नमो धनुष्कृद्भ्यश्च वो नमो देवानां हृदयेभ्यः किरिकेभ्यो वो नमो विचिन्वत्केभ्यो नमो विक्षिणत्केभ्यो नम आनिर्हतेभ्यो नमो दद्युः कुर्युश्च ते सर्वत आढ्या जायन्ते ॥४६ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैः सर्वौषधिभ्योऽन्नादिकं संगृह्यानाथमनुष्यादिप्राणिभ्यो दत्त्वा आनन्दयितव्याः ॥४६ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी सर्व वनस्पती वगैरेपासून अन्न इत्यादी उत्तम पदार्थ तयार करावेत आणि ते अनाथांना देऊन सर्वांना आनंदित करावे.