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नमः॑ श॒ङ्गवे॑ च पशु॒पत॑ये च॒ नम॑ उ॒ग्राय॑ च भी॒माय॑ च॒ नमो॑ऽग्रेव॒धाय॑ च दूरेव॒धाय॑ च॒ नमो॑ ह॒न्त्रे च॒ हनी॑यसे च॒ नमो॑ वृ॒क्षेभ्यो॒ हरि॑केशेभ्यो॒ नम॑स्ता॒राय॑ ॥४० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नमः॑। श॒ङ्गव॒ इति॑ श॒म्ऽगवे॑। च॒। प॒शु॒पत॑य इति॑ प॒शु॒ऽपत॑ये। च॒। नमः॑। उ॒ग्राय॑। च॒। भी॒माय॑। च॒। नमः॑। अ॒ग्रे॒व॒धायेत्य॑ग्रेऽव॒धाय॑। च॒। दू॒रे॒व॒धायेति॑ दूरेऽव॒धाय॑। च॒। नमः॑। ह॒न्त्रे। च॒। हनी॑यसे। च॒। नमः॑। वृ॒क्षेभ्यः॑। हरि॑केशेभ्य इति॒ हरि॑ऽकेशेभ्यः। नमः॑। ता॒राय॑ ॥४० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:16» मन्त्र:40


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यों को कैसे संतोषी होना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - जो मनुष्य (शङ्गवे) सुख को प्राप्त होने (च) और (पशुपतये) गौ आदि पशुओं की रक्षा करनेवाले को (च) और गौ आदि को भी (नमः) अन्नादि पदार्थ देवें (उग्राय) तेजस्वी (च) और (भीमाय) डर दिखानेवाले का (च) भी (नमः) सत्कार करें (अग्रेवधाय) पहिले शत्रुओं को बाँधने हारे (च) और (दूरेवधाय) दूर पर शत्रुओं को बाँधने वा मारनेवाले को (च) भी (नमः) अन्नादि देवें (हन्त्रे) दुष्टों को मारने (च) और (हनीयसे) दुष्टों का अत्यन्त निर्मूल विनाश करने हारे को (च) भी (नमः) अन्नादि देवें (वृक्षेभ्यः) शत्रु को काटनेवालों को वा वृक्षों का और (हरिकेशेभ्यः) हरे केशोंवाले ज्वानों वा हरे पत्तोंवाले वृक्षों का (नमः) सत्कार करें वा जलादि देवें और (ताराय) दुःख से पार करनेवाले पुरुष को (नमः) अन्नादि देवें वे सुखी हों ॥४० ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि गौ आदि पशुओं के पालन और भयङ्कर जीवों की शान्ति करने से संतोष करें ॥४० ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यैः कथं संतोष्टव्यमित्याह ॥

अन्वय:

(नमः) अन्नादिकम् (शङ्गवे) शं सुखं गच्छति प्राप्नोति तस्मै (च) (पशुपतये) गवादिपशूनां पालकाय (च) (नमः) सत्करणम् (उग्राय) तेजस्विने (च) (भीमाय) बिभेति यस्मात् तस्मै भयङ्कराय (च) (नमः) अन्नादिकम् (अग्रेवधाय) योऽग्रे पुरः शत्रून् बध्नाति हन्ति वा तस्मै (च) (दूरेवधाय) योऽरीन् दूरे बध्नाति तस्मै (च) (नमः) अन्नादिदानम् (हन्त्रे) यो दुष्टान् हन्ति तस्मै (च) (हनीयसे) दुष्टानामतिशयेन हन्त्रे विनाशकाय (च) (नमः) सत्करणम् (वृक्षेभ्यः) ये शत्रून् वृश्चन्ति छिन्दन्ति तेभ्यः पादपेभ्यो वा (हरिकेशेभ्यः) हरयो हरिताः केशा येषां तेभ्यो युवभ्यो वा (नमः) अन्नादिकम् (ताराय) दुःखात् सन्तारकाय ॥४० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - ये मनुष्याः शङ्गवे च पशुपतये च नम उग्राय च भीमाय च नमोऽग्रेवधाय च दूरेवधाय च नमो हन्त्रे च हनीयसे च नमो वृक्षेभ्यो हरिकेशेभ्यो नमस्ताराय नमो दद्युः कुर्युस्ते सुखिनः स्युः ॥४० ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैर्गवादिपशुपालनेन भयङ्करादिशान्तिकरणेन च संतोष्टव्यम् ॥४० ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी गाई इत्यादी पशूंचे पालन करावे व हानिकारक जीवांना शांत करण्यात संतोष मानावा.