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नमः॒ सोभ्या॑य च प्रतिस॒र्या᳖य च॒ नमो॒ याम्या॑य च॒ क्षेम्या॑य च॒ नमः॒ श्लोक्या॑य चावसा॒न्या᳖य च॒ नम॑ऽउर्व॒र्या᳖य च॒ खल्या॑य च ॥३३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नमः॑। सोभ्या॑य। च॒। प्र॒तिस॒र्या᳖येति॑ प्रतिऽस॒र्या᳖य। च॒। नमः॑। याम्या॑य। च॒। क्षेम्या॑य। च॒। नमः॑। श्लोक्या॑य। च॒। अ॒व॒सा॒न्या᳖येत्य॑वऽसा॒न्या᳖य। च॒। नमः॑। उ॒र्व॒र्या᳖य। च॒। खल्या॑य। च॒ ॥३३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:16» मन्त्र:33


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वही विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! (सोभ्याय) ऐश्वर्ययुक्तों में प्रसिद्ध (च) और (प्रतिसर्याय) धर्मात्माओं में उत्पन्न हुए (च) तथा धनी धर्मात्माओं को (नमः) अन्न दे (याम्याय) न्यायकारियों में उत्तम (च) और (क्षेम्याय) रक्षा करनेवालों में चतुर (च) और न्यायाधीशादि को (नमः) अन्न दे और (श्लोक्याय) वेदवाणी में प्रवीण (च) और (अवसान्याय) कार्यसमाप्तिव्यवहार में कुशल (च) तथा आरम्भ करने में उत्तम पुरुष का (नमः) सत्कार (उर्वर्याय) महान् पुरुषों के स्वामी (च) और (खल्याय) अच्छे अन्नादि पदार्थों के सञ्चय करने में प्रवीण (च) और व्यय करने में विचक्षण पुरुष का (नमः) सत्कार करके इन सब को आप लोग आनन्दित करो ॥३३ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में अनेक चकारों से और भी उपयोगी अर्थ लेना और सत्कार करना चाहिये। प्रजास्थ पुरुष न्यायाधीशों, न्यायाधीश प्रजास्थों का सत्कार, पति आदि स्त्री आदि की और स्त्री आदि पति आदि पुरुषों की प्रसन्नता करें ॥३३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(नमः) अन्नम् (सोभ्याय) सोभेष्वैश्वर्य्ययुक्तेषु भवाय (च) (प्रतिसर्याय) ये प्रतीते धर्मे सरन्ति तेषु भवाय (च) (नमः) सत्करणम् (याम्याय) यो यमेषु न्यायकारिषु साधुस्तस्मै, अत्र अन्येषामपि दृश्यते [अष्टा०६.३.१३७] इति दीर्घः। (च) (क्षेम्याय) क्षेमेषु रक्षकेषु साधुस्तस्मै (च) (नमः) सत्करणम् (श्लोक्याय) श्लोके वेदवाण्यां साधवे, श्लोक इति वाङ्नामसु पठितम् ॥ (निघं०१.११) (च) (अवसान्याय) अवसानव्यवहारे साधवे (च) (नमः) सत्करणम् (उर्वर्याय) उरूणां महतामर्याय स्वामिने (च) (खल्याय) खले संचयाधिकरणे साधवे (च) ॥३३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! सोभ्याय च प्रतिसर्याय च नमो याम्याय च क्षेम्याय च नमः श्लोक्याय चावसान्याय च नम उर्वर्याय च खल्याय च नमः प्रयोज्य दत्त्वा चैतान् भवन्त आनन्दयन्तु ॥३३ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रानेकैश्चकारैरन्येप्युपयोगिनोऽर्थाः संग्राह्याः सत्कर्त्तव्याश्च। प्रजास्थैर्न्यायाधीशादीनां न्यायाधीशाद्यैः प्रजास्थानां च सत्कारः पत्याद्यैर्भार्य्याद्या भार्य्याद्यैः पत्यादयश्च प्रसादनीयाः ॥३३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात अनेक चकार आल्यामुळे अधिक उपयुक्त असा अर्थ घ्यावा. प्रजेने न्यायाधीशांचा व न्यायाधीशांनी प्रजेचा सन्मान करावा. (अनेक कुशल लोकांचाही सत्कार करावा) पतीने पत्नीला व पत्नीने पतीला प्रसन्न करावे.