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नमो॑ ज्ये॒ष्ठाय॑ च कनि॒ष्ठाय॑ च॒ नमः॑ पूर्व॒जाय॑ चापर॒जाय॑ च॒ नमो॑ मध्य॒माय॑ चापग॒ल्भाय॑ च॒ नमो॑ जघ॒न्या᳖य च बु॒ध्न्या᳖य च ॥३२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नमः॑। ज्ये॒ष्ठाय॑। च॒। क॒नि॒ष्ठाय॑। च॒। नमः॑। पू॒र्व॒जायेति॑ पूर्व॒ऽजाय॑। च॒। अ॒प॒र॒जायेत्य॑पर॒ऽजाय॑। च॒। नमः॑। म॒ध्य॒माय॑। च॒। अ॒प॒ग॒ल्भायेत्य॑पऽग॒ल्भाय॑। च॒। नमः॑। ज॒घ॒न्या᳖य। च॒। बु॒ध्न्या᳖य। च॒ ॥३२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:16» मन्त्र:32


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्य लोग परस्पर कैसे सत्कार करनेवाले हों, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! तुम लोग (ज्येष्ठाय) अत्यन्त वृद्धों (च) और (कनिष्ठाय) अति बालकों को (नमः) सत्कार और अन्न (च) तथा (पूर्वजाय) ज्येष्ठभ्राता वा ब्राह्मण (च) और (अपरजाय) छोटे भाई वा नीच का (च) भी (नमः) सत्कार वा अन्न (मध्यमाय) बन्धु, क्षत्रिय वा वैश्य (च) और (अपगल्भाय) ढीठपन छोड़े हुए सरल स्वभाववाले (च) इन सब का (नमः) सत्कार आदि (च) और (जघन्याय) नीचकर्मकर्त्ता शूद्र वा म्लेच्छ (च) तथा (बुध्न्याय) अन्तरिक्ष में हुए मेघ के तुल्य वर्त्तमान दाता पुरुष का (नमः) अन्नादि से सत्कार करो ॥३२ ॥
भावार्थभाषाः - परस्पर मिलते समय सत्कार करना हो तब (नमस्ते) इस वाक्य का उच्चारण करके छोटे बड़ों, बड़े छोटों, नीच उत्तमों, उत्तम नीचों और क्षत्रियादि ब्राह्मणों वा ब्राह्मणादि क्षत्रियादिकों का निरन्तर सत्कार करें। सब लोग इसी वेदोक्त प्रमाण से सर्वत्र शिष्टाचार में इसी वाक्य का प्रयोग करके परस्पर एक-दूसरे का सत्कार करने से प्रसन्न होवें ॥३२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्याः परस्परं कथं सत्कृता भवेयुरित्याह ॥

अन्वय:

(नमः) सत्करणमन्नं वा (ज्येष्ठाय) अतिशयेन वृद्धाय (च) (कनिष्ठाय) अतिशयेन बालकाय (च) (नमः) सत्करणमन्नं वा (पूर्वजाय) पूर्वं जाताय ज्येष्ठाय भ्रात्रे ब्राह्मणाय वा (च) (अपरजाय) अपरे जाताय ज्येष्ठानुजायान्त्यजाय वा (च) (नमः) सत्कारादिकम् (मध्यमाय) मध्ये भवाय बन्धवे क्षत्रियाय वैश्याय वा (च) (अपगल्भाय) अपगतं दूरीकृतं गल्भं धार्ष्ट्यं येन तस्मै (च) (नमः) सत्करणम् (जघन्याय) जघने नीचकर्मणि भवाय शूद्राय म्लेच्छाय वा (च) (बुध्न्याय) बुध्ने जलबन्धनेऽन्तरिक्षे भवाय मेघायेव वर्त्तमानाय दात्रे (च) ॥३२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यूयं ज्येष्ठाय च कनिष्ठाय च नमः पूर्वजाय चापरजाय च नमो मध्यमाय चापगल्भाय च नमो जघन्याय च बुध्न्याय च नमो दत्त ॥३२ ॥
भावार्थभाषाः - सत्कारे कर्त्तव्य नमस्त इति वाक्योच्चारणेन कनिष्ठैर्ज्येष्ठा ज्येष्ठैः कनिष्ठा नीचैरुत्तमा उत्तमैर्नीचाः क्षत्रियाद्यैर्ब्राह्मणा ब्राह्मणाद्यैः क्षत्रियाद्याश्च सततं सत्कर्त्तव्याः। एतेनैव वेदोक्तप्रमाणेन शिष्टाचारे सर्वत्र सर्वैरेतद्वाक्यं सम्प्रयोज्यान्योन्येषां सत्करणात् प्रसन्नैर्भवितव्यम् ॥३२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - परस्परांना भेटताना ‘नमस्ते’ या वाक्याचे उच्चारण करून छोटे, मोठे, क्षुद्र, उत्तम, ब्राह्मण, क्षत्रिय वगैरेंचा सदैव मान राखावा. सर्व लोकांनी याच वेदोक्त पद्धतीने शिष्टाचार पाळावा व याच वाक्याचा प्रयोग करून परस्परांविषयी आदर व्यक्त करून प्रसन्न व्हावे.