वांछित मन्त्र चुनें

नम॑ऽआ॒शवे॑ चाजि॒राय॑ च॒ नमः॒ शीघ्र्या॑य च॒ शीभ्या॑य च॒ नम॒ऽऊर्म्या॑य चावस्व॒न्या᳖य च॒ नमो॑ नादे॒याय॑ च॒ द्वीप्या॑य च ॥३१ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नमः॑। आ॒शवे॑। च॒। अ॒जि॒राय॑। च॒। नमः॑। शीघ्र्या॑य। च॒। शीभ्या॑य। च॒। नमः॑। ऊर्म्या॑य। च॒। अ॒व॒स्व॒न्या᳖येत्य॑वऽस्व॒न्या᳖य। च॒। नमः॑। ना॒दे॒याय॑। च॒। द्वीप्या॑य। च॒ ॥३१ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:16» मन्त्र:31


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब उद्योग कैसे करना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जो तुम लोग (आशवे) वायु के तुल्य मार्ग में शीघ्रगामी (च) और (अजिराय) असवारों को फेंकनेवाले घोड़े (च) तथा हाथी आदि को (नमः) अन्न (शीघ्र्याय) शीघ्र चलने में उत्तम (च) और (शीभ्याय) शीघ्रता करने हारों में प्रसिद्ध (च) तथा मध्यस्थ जन को (नमः) अन्न (ऊर्म्याय) जल-तरङ्गों में वायु के समान वर्त्तमान (च) और (अवस्वन्याय) अनुत्तम शब्दों में प्रसिद्ध होनेवाले के लिये (च) तथा दूर से सुनने हारे को (नमः) अन्न (नादेयाय) नदी में रहने (च) और (द्वीप्याय) जल के बीच टापू में रहने (च) तथा उनके सम्बन्धियों को (नमः) अन्न देते रहो तो आप लोगों को सम्पूर्ण आनन्द प्राप्त हों ॥३१ ॥
भावार्थभाषाः - जो क्रियाकौशल से बनाये विमानादि यानों और घोड़ों से शीघ्र चलते हैं, वे किस-किस द्वीप वा देश को न जाके राज्य के लिये धन को नहीं प्राप्त होते? किन्तु सर्वत्र जा आ के सब को प्राप्त होते हैं ॥३१ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथोद्योगः कथं कार्य इत्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

(नमः) अन्नादिकम् (आशवे) वायुरिवाध्वानं व्याप्तायाश्वाय (च) (अजिराय) अश्ववारं प्रक्षेप्त्रे (च) (नमः) अन्नम् (शीघ्र्याय) शीघ्रगतौ साधवे (च) (शीभ्याय) शीभेषु क्षिप्रकारिषु भवाय। शीभमिति क्षिप्रनामसु पठितम् ॥ (निघं०२.१५) (च) (नमः) अन्नम् (ऊर्म्याय) ऊर्मिषु जलतरङ्गेषु भवाय वायुरिव वर्त्तमानाय (च) (अवस्वन्याय) अर्वाचीनेषु स्वनेषु भवाय (च) (नमः) अन्नम् (नादेयाय) नद्यां भवाय (च) (द्वीप्याय) द्वीपेषु द्विर्गतजलेषु देशेषु भवाय (च) ॥३१ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यदि यूयमाशवे चाजिराय च नमः शीघ्र्याय शीभ्याय च नमश्चोर्म्याय चावस्वन्याय च नमो नादेयाय च द्वीप्याय च नमो दत्त तर्हि भवन्तोऽखिलानन्दान् प्राप्नुत ॥३१ ॥
भावार्थभाषाः - ये क्रियाकौशलेन रचितैर्विमानादियानैरश्वादिभिश्च शीघ्रं गतिमन्तः सन्ति, ते कं कं द्वीपं देशं वाऽगत्वा राज्याय धनं च नाप्नुवन्ति? किन्तु सर्वत्र गत्वा सर्वमाप्नुवन्ति ॥३१ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जे लोक कौशल्याने उत्तम विमान वगैरे यानांच्या साह्याने व घोड्यांच्या वेगाने शीघ्र जातात ते केवळ परदेशी जाऊन राज्यासाठी धन गोळा करत नाहीत, तर सर्वत्र संचार करून सर्वांशी संपर्क ठेवतात.