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नमः॒ श्वभ्यः॒ श्वप॑तिभ्यश्च वो॒ नमो॒ नमो॑ भ॒वाय॑ च रु॒द्राय॑ च॒ नमः॑ श॒र्वाय॑ च पशु॒पत॑ये च॒ नमो॒ नील॑ग्रीवाय च शिति॒कण्ठा॑य च ॥२८ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

नमः॑। श्वभ्य॒ इति॒ श्वऽभ्यः॑। श्वप॑तिभ्य॒ इति॒ श्वप॑तिऽभ्यः। च॒। वः॒। नमः॑। नमः॑। भ॒वाय॑। च॒। रु॒द्राय॑। च॒। नमः॑। श॒र्वाय॑। च॒। प॒शु॒पत॑य॒ इति॑ पशु॒ऽपत॑ये। च॒। नमः॑। नील॑ग्रीवा॒येति॒ नील॑ऽग्रीवाय। च॒। शि॒ति॒कण्ठा॒येति॑ शिति॒ऽकण्ठा॑य। च॒ ॥२८ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:16» मन्त्र:28


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्य लोग किन से कैसा उपकार लेवें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे हम परीक्षक लोग (श्वभ्यः) कुत्तों को (नमः) अन्न देवें (च) और (वः) तुम (श्वपतिभ्यः) कुत्तों को पालनेवालों को (नमः) अन्न देवें तथा सत्कार करें (च) तथा (भवाय) जो शुभगुणों में प्रसिद्ध हो उस जन का (नमः) सत्कार (च) और (रुद्राय) दुष्टों को रुलाने हारे वीर का सत्कार (च) तथा (शर्वाय) दुष्टों को मारनेवालों को (नमः) अन्नादि देते (च) और (पशुपतये) गौ आदि पशुओं के पालक को अन्न (च) और (नीलग्रीवाय) सुन्दर वर्णवाले कण्ठ से युक्त (च) और (शितिकण्ठाय) तीक्ष्ण वा काले कण्ठवाले को (नमः) अन्न देते और सत्कार करते हैं वैसे तुम भी दिया, किया करो ॥२८ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि कुत्ते आदि पशुओं को अन्नादि से बढ़ा के उनसे उपकार लेवें और पशुओं के रक्षकों का सत्कार भी करें ॥२८ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यैः केभ्यः कथमुपकारो ग्राह्य इत्याह ॥

अन्वय:

(नमः) अन्नम् (श्वभ्यः) कुक्कुरेभ्यः (श्वपतिभ्यः) शुनां पालकेभ्यः (च) (वः) (नमः) अन्नं सत्करणं च (नमः) सत्करणम् (भवाय) यः शुभगुणादिषु भवति तस्मै (च) (रुद्राय) दुष्टानां रोदकाय (च) (नमः) अन्नादिकम् (शर्वाय) हिंसकाय (च) (पशुपतये) गवादिपशुपालकाय (च) (नमः) अन्नम् (नीलग्रीवाय) नीलः शोभनो वर्णो ग्रीवायां यस्य तस्मै (च) (शितिकण्ठाय) शितिस्तीक्ष्णीभूतः कृष्णो वा कण्ठो यस्य तस्मै (च) ॥२८ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यथा वयं परीक्षकाः श्वभ्यो नमो वः श्वपतिभ्यो नमश्च, भवाय नमश्च रुद्राय नमश्च शर्वाय नमश्च नमश्च पशुपतये नीलग्रीवाय नमश्च शितिकण्ठाय नमश्च दद्याम कुर्याम तथा यूयमपि दत्त कुरुत च ॥२८ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैः श्वादिपशूनन्नादिदानेन वर्द्धयित्वा तैरुपकारो ग्राह्यः। पशुपालकादीनां सत्कारश्च कार्यः ॥२८ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी कुत्र्यांना अन्न खाऊ घालून पोषण करावे व त्यांचा उपयोग करून घ्यावा, तसेच पशूंच्या रक्षकांचाही सन्मान करावा.