मा नो॑ म॒हान्त॑मु॒त मा नो॑ऽअर्भ॒कं मा न॒ऽउक्ष॑न्तमु॒त मा न॑ऽउक्षि॒तम्। मा नो॑ वधीः पि॒तरं॒ मोत मा॒तरं॒ मा नः॑ प्रि॒यास्त॒न्वो᳖ रुद्र रीरिषः ॥१५ ॥
मा। नः॒। म॒हान्त॑म्। उ॒त। मा। नः॒। अ॒र्भ॒कम्। मा। नः॒। उक्ष॑न्तम्। उ॒त। मा। नः॒। उ॒क्षि॒तम्। मा। नः॒। व॒धीः॒। पि॒तर॑म्। मा। उ॒त। मा॒तर॑म्। मा। नः॒। प्रि॒याः। त॒न्वः᳖। रु॒द्र॒। री॒रि॒ष॒ इति॑ रीरिषः ॥१५ ॥
हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
राजपुरुषों को क्या नहीं करना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
राजजनैः किं न कार्यमित्याह ॥
(मा) निषेधार्थे (नः) अस्माकम् (महान्तम्) महागुणविशिष्टं पूज्यं जनम् (उत) अपि (मा) (नः) (अर्भकम्) अल्पं क्षुद्रम् (मा) (नः) (उक्षन्तम्) वीर्य्यसेक्तारम् (उत) (मा) (नः) (उक्षितम्) सिक्तम् (मा) (नः) (वधीः) हिंस्याः (पितरम्) पालकं जनकम् (मा) (उत) (मातरम्) मान्यप्रदां जननीम् (मा) (नः) (प्रियाः) स्त्र्यादेः प्रीत्युत्पादकानि (तन्वः) शरीराणि (रुद्र) युद्धसेनाधिकृतविद्वन् (रीरिषः) हिंस्याः। अत्र लिङर्थे लुङडभावश्च ॥१५ ॥