आ॒योष्ट्वा॒ सद॑ने सादया॒म्यव॑तश्छा॒याया॑ समु॒द्रस्य॒ हृद॑ये। र॒श्मी॒वतीं॒ भास्व॑ती॒मा या द्यां भास्या पृ॑थि॒वीमोर्व॒न्तरि॑क्षम् ॥६३ ॥
आ॒योः। त्वा॒। सद॑ने। सा॒द॒या॒मि॒। अव॑तः। छा॒याया॑म्। स॒मु॒द्रस्य॑। हृद॑ये। र॒श्मी॒वती॒मिति॑ रश्मि॒ऽवती॑म्। भास्व॑तीम्। आ। या। द्या॒म्। भासि॑। आ। पृ॒थि॒वीम्। आ। उ॒रु। अ॒न्तरि॑क्षम् ॥६३ ॥
हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
विदुषी स्त्री को क्या करना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
विदुष्या किं कर्त्तव्यमित्याह ॥
(आयोः) न्यायानुगामिनो दीर्घजीवितस्य (त्वा) त्वाम् (सदने) स्थाने (सादयामि) (अवतः) रक्षणादि कुर्वतः (छायायाम्) आश्रये (समुद्रस्य) (हृदये) मध्ये (रश्मीवतीम्) प्रशस्तविद्याप्रकाशयुक्ताम्। अत्र अन्येषामपि [अ०६.३.१३७] इति दीर्घः (भास्वतीम्) देदीप्यमानाम् (आ) (या) (द्याम्) प्रकाशम् (भासि) दीपयसि (आ) (पृथिवीम्) भूमिम् (आ) (उरु) (अन्तरिक्षम्) आकाशम्। [अयं मन्त्रः शत०८.७.३.१३ व्याख्यातः] ॥६३ ॥