वांछित मन्त्र चुनें

प्रोथ॒दश्वो॒ न यव॑सेऽवि॒ष्यन्य॒दा म॒हः सं॒वर॑णा॒द्व्यस्था॑त्। आद॑स्य॒ वातो॒ऽअनु॑ वाति शो॒चिरध॑ स्म ते॒ व्रज॑नं कृ॒ष्णम॑स्ति ॥६२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प्रोथ॑त्। अश्वः॑। न। यव॑से। अ॒वि॒ष्यन्। य॒दा। म॒हः। सं॒वर॑णा॒दिति॑ स॒म्ऽवर॑णात्। वि। अस्था॑त्। आत्। अ॒स्य॒। वातः॑। अनु॑। वा॒ति॒। शो॒चिः। अध॑। स्म॒। ते॒। व्रज॑नम्। कृ॒ष्णम्। अ॒स्ति॒ ॥६२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:15» मन्त्र:62


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी वही विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजन् ! आप (यवसे) भूसा आदि के लिये (अश्वः) घोड़े के (न) समान प्रजाओं को (प्रोथत्) समर्थ कीजिये (यदा) जब (महः) बड़े (संवरणात्) आच्छादन से (अविष्यन्) रक्षा आदि करते हुए (व्यस्थात्) स्थित होवें (आत्) पुनः (अस्य) इस (ते) आप का (व्रजनम्) चलने तथा (कृष्णम्) आकर्षण करनेवाला (शोचिः) प्रकाश (अस्ति) है, (अध) इस के पश्चात् (स्म) ही आप का (वातः) चलनेवाला भृत्य (अनु, वाति) पीछे चलता है ॥६२ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में उपमालङ्कार है। जैसे रक्षा करने से घोड़े पुष्ट होकर कार्य्य सिद्ध करने में समर्थ होते हैं, वैसे ही न्याय से रक्षा की हुई प्रजा सन्तुष्ट होकर राज्य को बढ़ाती हैं ॥६२ ॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(प्रोथत्) पर्याप्नुयात् (अश्वः) वाजी (न) इव (यवसे) बुसाद्याय (अविष्यन्) रक्षणादिकं कुर्वन् (यदा) (महः) महतः (संवरणात्) आच्छादनात् (वि) (अस्थात्) तिष्ठेत् (आत्) (अस्य) (वातः) गन्ता (अनु) (वाति) गच्छति (शोचिः) प्रकाशः (अध) अथ (स्म) एव (ते) तव (व्रजनम्) गमनम् (कृष्णम्) कर्षकम् (अस्ति)। [अयं मन्त्रः शत०८.७.३.१२ व्याख्यातः] ॥६२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजन् ! भवान् यवसेऽश्वो न प्रजाः प्रोथत्। यदा महः संवरणादविष्यन् व्यस्थादादस्य ते तव व्रजनं कृष्णं शोचिरस्ति। अध स्मास्य तव वातोऽनुवाति ॥६२ ॥
भावार्थभाषाः - अत्रोपमालङ्कारः। यथा पालनात् तुरङ्गाः पुष्टा भूत्वा कार्य्यसिद्धिक्षमा भवन्ति, तथैव नयेन संपालिताः प्रजाः सन्तुष्टा भूत्वा राज्यं वर्धयन्ति ॥६२ ॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात उपमालंकार आहे. ज्याप्रमाणे घोड्यांचे रक्षण केल्याने ते पुष्ट बनून समर्थपणे कार्य करू शकतात, तसेच न्यायाने प्रजेचे रक्षण केल्यास प्रजा संतुष्ट होते व राज्य वाढविते.