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येना॑ स॒मत्सु॑ सा॒सहोऽव॑ स्थि॒रा त॑नुहि॒ भूरि॒ शर्ध॑ताम्। व॒नेमा॑ तेऽअ॒भिष्टि॑भिः ॥४० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

येन॑। स॒मत्स्विति॑ स॒मत्ऽसु॑। सा॒सहः॑। स॒सह॒ इति॑ स॒सहः॑। अव॑। स्थि॒रा। त॒नु॒हि॒। भूरि॑। शर्ध॑ताम्। व॒नेम॑। ते॒। अ॒भिष्टि॑भि॒रित्य॒भिष्टि॑ऽभिः ॥४० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:15» मन्त्र:40


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह कैसा हो, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सुभग) सुन्दर लक्ष्मीयुक्त पुरुष ! आप (येन) जिस के प्रताप से हमारे (समत्सु) युद्धों में (सासहः) शीघ्र सहना हो उस को तथा (भूरि) बहुत प्रकार (शर्धताम्) बल करते हुए हमारे (स्थिरा) स्थिर सेना के साधनों को (अवतनुहि) अच्छे प्रकार बढ़ाइये (ते) आप की (अभिष्टिभिः) इच्छाओं के अनुसार वर्त्तमान हम लोग उस सेना के साधनों का (वनेम) सेवन करें ॥४० ॥
भावार्थभाषाः - यहाँ भी (सुभग, नः) इन दोनों पदों की अनुवृत्ति आती है। विद्वानों को उचित है कि बहुत बलयुक्त वीर पुरुषों का उत्साह नित्य बढ़ावें, जिससे ये लोग उत्साही हुए राजा और प्रजा के हितकारी काम किया करें ॥४० ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स कीदृश इत्याह ॥

अन्वय:

(येन) अत्र संहितायाम् [अ०६.३.११४] इति दीर्घः (समत्सु) संग्रामेषु (सासहः) भृशं सोढा (अव) (स्थिर) स्थिराणि सैन्यानि (तनुहि) विस्तृणु (भूरि) बहु (शर्द्धताम्) बलं कुर्वताम्। बलवाचिशर्धशब्दात् करोत्यर्थे क्विप् ततः शतृ (वनेम) संभजेम। अत्र संहितायाम् [अ०६.३.११४] इति दीर्घः (ते) तव (अभिष्टिभिः) इष्टाभिरिच्छाभिः ॥४० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे सुभग ! येन त्वं समत्सु सासहः स्यात् स त्वं भूरि शर्धतामस्माकं स्थिरावतनुहि। तेऽभिष्टिभिः सह वर्त्तमाना वयं तानि वनेम ॥४० ॥
भावार्थभाषाः - अत्रापि (सुभग) (नः) इति पदद्वयं पूर्वतोऽनुवर्त्तते। विद्वद्भिर्बहुबलयुक्तानां वीराणां नित्यमुत्साहो वर्धनीयः। येनोत्साहिताः सन्तो राजप्रजाहितानि कर्माणि कुर्य्युः ॥४० ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - येथे (सुभग नः) या दोन पदांची अनुवृत्ती होते. विद्वानांनी अत्यंत बलवान वीर पुरुषांचा उत्साह सदैव वाढवावा. ज्यामुळे हे लोक उत्साही बनून राजा व प्रजेच्या हितासाठी काम करतील.