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सꣳस॒मिद्यु॑वसे वृष॒न्नग्ने॒ विश्वा॑न्य॒र्य्यऽआ। इ॒डस्प॒दे समि॑ध्यसे॒ स नो॒ वसू॒न्याभ॑र ॥३० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सꣳस॒मिति॒ सम्ऽस॑म्। इत्। यु॒व॒से॒। वृ॒ष॒न्। अग्ने॑। विश्वा॑नि। अ॒र्य्यः। आ। इडः॒। प॒दे। सम्। इ॒ध्य॒से॒। सः। नः॒। वसू॑नि। आ। भ॒र॒ ॥३० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:15» मन्त्र:30


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

वैश्य को क्या करना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (वृषन्) बलवन् (अग्ने) प्रकाशमान (अर्यः) वैश्य ! जो तू (संसमायुवसे) सम्यक् अच्छे प्रकार सम्बन्ध करते हो (इडः) प्रशंसा के योग्य (पदे) प्राप्ति के योग्य अधिकार में (समिध्यसे) सुशोभित होते हो, (सः) सो तू (इत्) ही अग्नि के योग से (नः) हमारे लिये (विश्वानि) सब (वसूनि) धनों को (आभर) अच्छे प्रकार धारण कर ॥३० ॥
भावार्थभाषाः - राजाओं से रक्षा प्राप्त हुए वैश्य लोग अग्न्यादि विद्याओं से अपने और राजपुरुषों के लिये सम्पूर्ण धन धारण करें ॥३० ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

वैश्येन किं कार्यमित्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

(संसम्) सम्यक् (इत्) एव (युवसे) मिश्रय। अत्र विकरणात्मनेपदव्यत्ययौ (वृषन्) बलवन् (अग्ने) प्रकाशमान (विश्वानि) अखिलानि (अर्यः) वैश्यः। अर्यः स्वामिवैश्ययोः [अ०३.१.१०३] इति वैश्यार्थे निपातितः (आ) (इडः) प्रशंसनीयस्य। इड इति पदनामसु पठितम् ॥ (निघं०५.२) अत्रेडधातोर्बाहुलकादौणादिकः क्विप्, आदेर्ह्रस्वश्च (पदे) प्रापणीये (सम्) (इध्यसे) प्रदीप्यसे (सः) (नः) अस्मभ्यम् (वसूनि) (आ) (भर) धर ॥३० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे वृषन्नग्ने अर्यस्त्वं संसमायुवसे, इडस्पदे समिध्यसे, स त्वमिदग्निना नो विश्वानि वसून्याभर ॥३० ॥
भावार्थभाषाः - राजभिः संरक्षिता वैश्या अग्न्यादिविद्याभ्यः स्वेभ्यो राजपुरुषेभ्यश्चाखिलानि धनानि संभरेयुः ॥३० ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - राजाकडून रक्षित असलेल्या वैश्यांनी अग्निविद्या इत्यादीसाठी व आपल्या राजपुरुषांसाठी संपूर्ण धन बाळगावे.