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यन्त्री॒ राड् य॒न्त्र्य᳖सि॒ यम॑नी ध्रु॒वासि॒ धरि॑त्री। इ॒षे त्वो॒र्जे त्वा॑ र॒य्यै त्वा॒ पोषा॑य त्वा ॥२२ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यन्त्री॑। राट्। य॒न्त्री। अ॒सि॒। यम॑नी। ध्रु॒वा। अ॒सि॒। धरि॑त्री। इ॒षे। त्वा॒। ऊ॒र्ज्जे। त्वा॒। र॒य्यै। त्वा॒। पोषा॑य। त्वा॒ ॥२२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:14» मन्त्र:22


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर स्त्री कैसी होवे, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे स्त्रि ! जो तू (यन्त्री) यन्त्र के तुल्य स्थित (राट्) प्रकाशयुक्त (यन्त्री) यन्त्र का निमित्त पृथिवी के समान (असि) है, (यमनी) आकर्षण शक्ति से नियमन करने हारी (ध्रुवा) आकाश-सदृश दृढ़ निश्चल (धरित्री) सब शुभगुणों का धारण करनेवाली (असि) है, (त्वा) तुझ को (इषे) इच्छा सिद्धि के लिये (त्वा) तुझ को (ऊर्जे) पराक्रम की प्राप्ति के लिये (त्वा) तुझ को (रय्यै) लक्ष्मी के लिये और (त्वा) तुझ को (पोषाय) पुष्टि होने के लिये मैं ग्रहण करता हूँ ॥२२ ॥
भावार्थभाषाः - जो स्त्री पृथिवी के समान क्षमायुक्त, आकाश के समान निश्चल और यन्त्रकला के तुल्य जितेन्द्रिय होती है, वह कुल का प्रकाश करनेवाली है ॥२२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः पत्नी कीदृशी स्यादित्याह ॥

अन्वय:

(यन्त्री) यन्त्रवत् स्थिता (राट्) प्रकाशमाना (यन्त्री) यन्त्रनिमित्ता (असि) (यमनी) आकर्षणेन नियन्तुं शीला आकाशवद् दृढा (ध्रुवा) (असि) (धरित्री) सर्वेषां धारिका (इषे) इच्छासिद्धये (त्वा) त्वाम् (ऊर्जे) पराक्रमप्राप्तये (त्वा) त्वाम् (रय्यै) लक्ष्म्यै (त्वा) त्वाम् (पोषाय) (त्वा) त्वाम्। [अयं मन्त्रः शत०८.३.४.१० व्याख्यातः] ॥२२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे स्त्रि ! या त्वं यन्त्री राट् यन्त्री भूमिरिवाऽसि, यमनी ध्रुवा धरित्र्यसि, त्वेषे त्वोर्जे त्वा रय्यै त्वा पोषाय चाऽहं स्वीकरोमि ॥२२ ॥
भावार्थभाषाः - या स्त्री भूमिवत् क्षमान्वितान्तरिक्षवदक्षोभा यन्त्रवज्जितेन्द्रिया भवति सा कुलदीपिकाऽस्ति ॥२२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी स्त्री पृथ्वीप्रमाणे क्षमाशील, आकाशाप्रमाणे निश्चल व यंत्राप्रमाणे स्थित असते ती कुळाचा उद्धार करणारी असते.