आयु॑र्मे पाहि प्रा॒णं मे॑ पाह्यपा॒नं मे॑ पाहि व्या॒नं मे॑ पाहि॒ चक्षु॑र्मे पाहि॒ श्रोत्रं॑ मे पाहि॒ वाचं॑ मे पिन्व॒ मनो॑ मे जिन्वा॒त्मानं॑ मे पाहि॒ ज्योति॑र्मे यच्छ ॥१७ ॥
आयुः॑। मे॒। पा॒हि॒। प्रा॒णम्। मे॒। पा॒हि॒। अ॒पा॒नमित्य॑प्ऽआ॒नम्। मे॒। पा॒हि॒। व्या॒नमिति॑ विऽआ॒नम्। मे॒। पा॒हि॒। चक्षुः॑। मे॒। पा॒हि॒। श्रोत्र॑म्। मे॒। पा॒हि॒। वाच॑म्। मे॒। पि॒न्व॒। मनः॑। मे॒। जि॒न्व॒। आ॒त्मान॑म्। मे॒। पा॒हि॒। ज्योतिः॑। मे॒। य॒च्छ॒ ॥१७ ॥
हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर भी पूर्वोक्त विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनस्तमेव विषयमाह ॥
(आयुः) जीवनम् (मे) मम (पाहि) (प्राणम्) (मे) (पाहि) (अपानम्) (मे) (पाहि) (व्यानम्) (मे) (पाहि) (चक्षुः) दर्शनम् (मे) (पाहि) (श्रोत्रम्) श्रवणम् (मे) (पाहि) (वाचम्) वाणीम् (मे) (पिन्व) सुशिक्षया सिञ्च (मनः) (मे) (जिन्व) प्रीणीहि (आत्मानम्) चेतनम् (मे) (पाहि) (ज्योतिः) विज्ञानम् (मे) मह्यम् (यच्छ) देहि। [अयं मन्त्रः शत०८.३.२.१४ व्याख्यातः] ॥१७ ॥