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आयु॑र्मे पाहि प्रा॒णं मे॑ पाह्यपा॒नं मे॑ पाहि व्या॒नं मे॑ पाहि॒ चक्षु॑र्मे पाहि॒ श्रोत्रं॑ मे पाहि॒ वाचं॑ मे पिन्व॒ मनो॑ मे जिन्वा॒त्मानं॑ मे पाहि॒ ज्योति॑र्मे यच्छ ॥१७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

आयुः॑। मे॒। पा॒हि॒। प्रा॒णम्। मे॒। पा॒हि॒। अ॒पा॒नमित्य॑प्ऽआ॒नम्। मे॒। पा॒हि॒। व्या॒नमिति॑ विऽआ॒नम्। मे॒। पा॒हि॒। चक्षुः॑। मे॒। पा॒हि॒। श्रोत्र॑म्। मे॒। पा॒हि॒। वाच॑म्। मे॒। पि॒न्व॒। मनः॑। मे॒। जि॒न्व॒। आ॒त्मान॑म्। मे॒। पा॒हि॒। ज्योतिः॑। मे॒। य॒च्छ॒ ॥१७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:14» मन्त्र:17


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी पूर्वोक्त विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे स्त्री वा पुरुष ! तू शरद् ऋतु में (मे) मेरी (आयुः) अवस्था की (पाहि) रक्षा कर (मे) मेरे (प्राणम्) प्राण की (पाहि) रक्षा कर (मे) मेरे (अपानम्) अपान वायु की (पाहि) रक्षा कर (मे) मेरे (व्यानम्) व्यान की (पाहि) रक्षा कर (मे) मेरे (चक्षुः) नेत्रों की (पाहि) रक्षा कर (मे) मेरे (श्रोत्रम्) कानों की (पाहि) रक्षा कर (मे) मेरी (वाचम्) वाणी को (पिन्व) अच्छी शिक्षा से युक्त कर (मे) मेरे (मनः) मन को (जिन्व) तृप्त कर (मे) मेरे (आत्मानम्) चेतन आत्मा की (पाहि) रक्षा कर और (मे) मेरे लिये (ज्योतिः) विज्ञान का (यच्छ) दान कर ॥१७ ॥
भावार्थभाषाः - स्त्री पुरुष की और पुरुष स्त्री की जैसे अवस्था आदि की वृद्धि होवे, वैसे परस्पर नित्य आचरण करें ॥१७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(आयुः) जीवनम् (मे) मम (पाहि) (प्राणम्) (मे) (पाहि) (अपानम्) (मे) (पाहि) (व्यानम्) (मे) (पाहि) (चक्षुः) दर्शनम् (मे) (पाहि) (श्रोत्रम्) श्रवणम् (मे) (पाहि) (वाचम्) वाणीम् (मे) (पिन्व) सुशिक्षया सिञ्च (मनः) (मे) (जिन्व) प्रीणीहि (आत्मानम्) चेतनम् (मे) (पाहि) (ज्योतिः) विज्ञानम् (मे) मह्यम् (यच्छ) देहि। [अयं मन्त्रः शत०८.३.२.१४ व्याख्यातः] ॥१७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे स्त्रि पुरुष वा ! त्वं शरदृतावायुर्मे पाहि, प्राणं मे पाह्यपानं मे पाहि, व्यानं मे पाहि, चक्षुर्मे पाहि, श्रोत्रं मे पाहि, वाचं मे पिन्व, मनो मे जिन्वात्मानं मे पाहि, ज्योतिर्मे यच्छ ॥१७ ॥
भावार्थभाषाः - स्त्री पुरुषस्य पुरुषः स्त्रियाश्च यथाऽऽयुरादीनां वृद्धिः स्यात् तथैव नित्यमाचरेताम् ॥१७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - स्त्री-पुरुषांच्या अवस्था जसजशा वृद्धिंगत होत जातील त्यानुरूप परस्परांशी व्यवहार करावा.