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योऽ अ॒ग्निर॒ग्नेरध्यजा॑यत॒ शोका॑त् पृथि॒व्याऽ उ॒त वा॑ दि॒वस्परि॑। येन॑ प्र॒जा वि॒श्वक॑र्मा ज॒जान॒ तम॑ग्ने॒ हेडः॒ परि॑ ते वृणक्तु ॥४५ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

यः। अ॒ग्निः। अ॒ग्नेः। अधि॑। अजा॑यत। शोका॑त्। पृ॒थि॒व्याः। उ॒त। वा॒। दि॒वः। परि॑। येन॑। प्र॒जा इति॑ प्र॒ऽजाः। वि॒श्वक॒र्मेति॑ वि॒श्वऽक॑र्मा। ज॒जान॑। तम्। अ॒ग्ने॒। हेडः॑। परि॑। ते॒। वृ॒ण॒क्तु॒ ॥४५ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:13» मन्त्र:45


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर इस विद्वान् को क्या करना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्वान् जन ! (यः) जो (पृथिव्याः) पृथिवी के (शोकात्) सुखानेहारे अग्नि (उत) (वा) अथवा (दिवः) सूर्य्य से (अग्नेः) बिजुलीरूप अग्नि से (अग्निः) प्रत्यक्ष अग्नि (अध्यजायत) उत्पन्न होता है, (येन) जिस से (विश्वकर्म्मा) सब कर्मों का आधार ईश्वर (प्रजाः) प्रजाओं को (परि) सब ओर से (जजान) रचता है, (तम्) उस अग्नि को (ते) तेरा (हेडः) क्रोध (परिवृणक्तु) सब प्रकार से छेदन करे ॥४५ ॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वानो ! तुम लोग जो अग्नि पृथिवी को फोड़ के और जो सूर्य्य के प्रकाश से बिजुली निकलती है, उस विघ्नकारी अग्नि से सब प्राणियों को रक्षित रक्खो और जिस अग्नि से ईश्वर सब की रक्षा करता है, उस अग्नि की विद्या जानो ॥४५ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनरनेन किं कार्यमित्याह ॥

अन्वय:

(यः) (अग्निः) चाक्षुषः (अग्नेः) विद्युदाख्यात् (अधि) (अजायत) जायते (शोकात्) शोषकात् (पृथिव्याः) (उत) (वा) (दिवः) सूर्यात् (परि) सर्वतः (येन) (प्रजाः) (विश्वकर्मा) विश्वानि कर्माणि यस्य सः (जजान) जनयति (तम्) (अग्ने) विद्वन् (हेडः) अनादरः (परि) (ते) तव (वृणक्तु) छिन्नो भवतु। [अयं मन्त्रः शत०७.५.२.२१ व्याख्यातः] ॥४५ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्ने विद्वन् ! यः पृथिव्याः शोकादुत वा दिवोऽग्नेरग्निरध्यजायत, येन विश्वकर्मा प्रजाः परिजजान, तं ते हेडः परिवृणक्तु ॥४५ ॥
भावार्थभाषाः - हे विद्वांसः ! यूयं योऽग्निः पृथिवीं भित्त्वोत्पद्यते यश्च सूर्यादेः, तस्माद् विघ्नकारिणोऽग्नेः सर्वान् प्राणिनः पृथग् रक्षत। येनाग्निनेश्वरः सर्वान् रक्षति तद्विद्यां विजानीत ॥४५ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - हे विद्वानांनो ! जो अग्नी (ज्वालामुखी वगैरे) पृथ्वीतून बाहेर येतो व सूर्याच्या प्रकाशातून जी विद्युत प्रकट होते त्या विघ्नकारी अग्नीपासून सर्व प्राण्यांचे रक्षण करा व ज्या अग्नीने ईश्वर सर्वांचे रक्षण करतो ती अग्निविद्या जाणा.