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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
मनुष्यों को क्या करके क्या करना चाहिये, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - (ओषधे) ओषधी के सदृश ओषधिविद्या की जानने हारी स्त्री ! जैसे ओषधी (सहमाना) बल का निमित्त (असि) है, (मे) मेरे रोगों का निवारण करके बल बढ़ाती है, वैसे (अरातीः) शत्रुओं को (सहस्व) सहन कर। अपने (पृतनायतः) सेनायुद्ध की इच्छा करते हुओं को (सहस्व) सहन कर और (सर्वम्) सब (पाप्मानम्) रोगादि को (सहस्व) सहन कर ॥९९ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि ओषधियों के सेवन से बल बढ़ा और प्रजा के तथा अपने शत्रुओं और पापी जनों को वश में करके सब प्राणियों को सुखी करें ॥९९ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
मनुष्यैः किं कृत्वा किं कार्य्यमित्याह ॥
अन्वय:
(सहस्व) बली भव (मे) मम (अरातीः) शत्रून् (सहस्व) (पृतनायतः) आत्मनः पृतनां सेनामिच्छतः (सहस्व) (सर्वम्) (पाप्मानम्) रोगादिकम् (सहमाना) बलनिमित्ता (असि) (ओषधे) ओषधिवद् वर्त्तमाने ॥९९ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे ओषधे औषधिवद्वर्त्तमाने स्त्रि ! यथौषधिः सहमानासि मे मम रोगान् सहते, तथऽरातीः सहस्व, स्वस्य पृतनायतः सहस्व, सर्वं पाप्मानं सहस्व ॥९९ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैरोषधिसेवनेन बलं वर्धयित्वा प्रजायाः स्वस्य च शत्रून् पापात्मनो जनाँश्च वशं नीत्वा सर्वे प्राणिनः सुखयितव्याः ॥९९ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी औषधांचे सेवन करून बल वाढवावे. आपले शत्रू, प्रजेचे शत्रू, पापी लोक यांना ताब्यात ठेवावे व सर्व प्राण्यांना सुखी करावे.