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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
क्या करने से ओषधियों का विज्ञान बढ़े, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्य लोगो ! जो (सोमेन) (राज्ञा) सर्वोत्तम सोमलता के (सह) साथ वर्त्तमान (ओषधयः) ओषधि हैं, उनके विज्ञान के लिये आप लोग (समवदन्त) आपस में संवाद करो। हे वैद्य (राजन्) राजपुरुष ! हम लोग (ब्राह्मणः) वेदों और उपवेदों का वेत्ता पुरुष (यस्मै) जिस रोगी के लिये इन ओषधियों का ग्रहण (कृणोति) करता है, (तम्) उस रोगी को रोगसागर से उन ओषधियों से (पारयामसि) पार पहुँचाते हैं ॥९६ ॥
भावार्थभाषाः - वैद्य लोगों को योग्य है कि आपस में प्रश्नोत्तरपूर्वक निरन्तर ओषधियों के ठीक-ठीक ज्ञान से रोगों से रोगी पुरुषों को पार कर निरन्तर सुखी करें। और जो इन में उत्तम विद्वान् हो, वह सब मनुष्यों को वैद्यकशास्त्र पढ़ावे ॥९६ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
किं कृत्वौषधिविज्ञानं वर्द्धेतेत्याह ॥
अन्वय:
(ओषधयः) सोमाद्याः (सम्) (अवदन्त) परस्परं संवादं कुर्य्युः (सोमेन) (सह) (राज्ञा) प्रधानेन (यस्मै) रोगिणे (कृणोति) (ब्राह्मणः) वेदोपवेदवित् (तम्) (राजन्) प्रकाशमान (पारयामसि) रोगसमुद्रात् पारं गमयेम ॥९६ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! याः सोमेन राज्ञा सह वर्त्तमाना ओषधयः सन्ति, तद्विज्ञानार्थं भवन्तः समवदन्त। हे राजन् ! वयं वैद्या ब्राह्मणो यस्मै ओषधीः कृणोति, तं रोगिणं रोगात् पारयामसि ॥९६ ॥
भावार्थभाषाः - वैद्याः परस्परं प्रश्नोत्तरैरोषधीविज्ञानं सम्यक् कृत्वा रोगेभ्यो रोगिणः पारं नीत्वा सततं सुखयेयुः, यश्चैतेषां विद्वत्तमः स्यात्, स सर्वानायुर्वेदमध्यापयेत् ॥९६ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - वैद्य लोकांनी आपापसात प्रश्नोत्तररूपाने औषधांचे यथायोग्य ज्ञान करून घ्यावे व रोगी माणसांचे रोग सतत दूर करून त्यांना सुखी करावे. त्यापैकी जो विद्वान असेल त्याने वैद्यकशास्त्र शिकवावे.