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मु॒ञ्चन्तु॑ मा शप॒थ्या᳕दथो॑ वरु॒ण्या᳖दु॒त। अथो॑ य॒मस्य॒ पड्वी॑शात् सर्व॑स्माद् देवकिल्वि॒षात् ॥९० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

मु॒ञ्चन्तु॑। मा॒। श॒प॒थ्या᳕त्। अथो॒ऽइत्यथो॑। व॒रु॒ण्या᳖त्। उ॒त। अथो॒ऽइत्यथो॑। य॒मस्य॑। पड्वी॑शात्। सर्व॑स्मात्। दे॒व॒कि॒ल्वि॒षादिति॑ देवऽकि॒ल्वि॒षात् ॥९० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:12» मन्त्र:90


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

कौन-कौन ओषधि किस-किस से छुड़ाती है, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् लोगो ! आप जैसे वे महौषधि रोगों से पृथक् करती हैं, (शपथ्यात्) शपथसम्बन्धी कर्म (अथो) और (वरुण्यात्) श्रेष्ठों में हुए अपराध से, (अथो) इसके पश्चात् (यमस्य) न्यायाधीश के (पड्वीशात्) न्याय के विरुद्ध आचरण से, (उत) और (सर्वस्मात्) सब (देवकिल्विषात्) विद्वानों के विषय में अपराध से (मा) मुझको (मुञ्चन्तु) पृथक् रक्खें, वैसे तुम लोगों को भी पृथक् रक्खें ॥९० ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को चाहिये कि प्रमादकारक पदार्थों को छोड़ के अन्य पदार्थों का भोजन करें और कभी सौगन्द, श्रेष्ठों का अपराध, न्याय से विरोध और मूर्खों के समान ईर्ष्या न करें ॥९० ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

किं किमौषधं कस्मात् कस्मान्मुञ्चतीत्याह ॥

अन्वय:

(मुञ्चन्तु) पृथक्कुर्वन्तु (मा) माम् (शपथ्यात्) शपथे भवात् कर्मणः (अथो) (वरुण्यात्) वरुणेषु वरेषु भवादपराधात् (उत) अपि (अथो) (यमस्य) न्यायाधीशस्य ( पड्वीशात्) न्यायविरोधाचरणात् (सर्वस्मात्) (देवकिल्विषात्) देवेषु विद्वत्स्वपराधकरणात् ॥९० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वांसः ! भवन्तो यथौषधयो रोगात् पृथग् रक्षन्ति, तथा शपथ्यादथो वरुण्यादथो यमस्य पड्वीशादुत सर्वस्माद् देवकिल्विषान्मा मुञ्चन्तु पृथग् रक्षन्तु, तथा युष्मानपि रोगेभ्यो मुञ्चन्तु ॥९० ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्यैः प्रमादकार्य्यौषधं विहायान्यद् भोक्तव्यम्, न कदाचिच्छपथः कार्य्यः, श्रेष्ठापराधान्न्यायविरोधात् पापाचरणाद् विद्वदीर्ष्याविषयात् पृथग् भूत्वाऽऽनुकूल्येन वर्त्तितव्यमिति ॥९० ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी अभक्ष्य (प्रमाद वाढविणाऱ्या) पदार्थांचा त्याग करून अन्य पदार्थांचे भोजन करावे व शपथ घेण्याचे कर्म, श्रेष्ठांकडून होणारा अपराध, न्यायाचा विरोध, मूर्खाप्रमाणे ईर्षा या सर्वांपासून दूर राहावे.