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सा॒कं य॑क्ष्म॒ प्रप॑त॒ चाषे॑ण किकिदी॒विना॑। सा॒कं वात॑स्य॒ ध्राज्या॑ सा॒कं न॑श्य नि॒हाक॑या ॥८७ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सा॒कम्। य॒क्ष्म॒। प्र। प॒त॒। चाषे॑ण। कि॒कि॒दी॒विना॑। सा॒कम्। वात॑स्य। ध्राज्या॑। सा॒कम्। न॒श्य॒। नि॒हाक॒येति॑ नि॒ऽहाक॑या ॥८७ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:12» मन्त्र:87


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

कैसे-कैसे रोगों को नष्ट करें, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे वैद्य विद्वन् पुरुष ! (किकिदीविना) ज्ञान बढ़ाने हारे (चाषेण) आहार से (साकम्) ओषधियुक्त पदार्थों के साथ (यक्ष्म) राजरोग (प्रपत) हट जाता है, जैसे उस (वातस्य) वायु की (ध्राज्या) गति के (साकम्) साथ (नश्य) नष्ट हो और (निहाकया) निरन्तर छोड़ने योग्य पीड़ा के (साकम्) साथ दूर हो, वैसा प्रयत्न कर ॥८७ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि ओषधियों का सेवन योगाभ्यास और व्यायाम के सेवन से रोगों को नष्ट कर सुख से वर्त्तें ॥८७ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

कथं कथं रोगा निहन्तव्या इत्याह ॥

अन्वय:

(साकम्) सह (यक्ष्म) राजरोगः (प्र) (पत) प्रपातय (चाषेण) भक्षणेन (किकिदीविना) किं किं ज्ञानं दीव्यति ददाति यस्तेन, ‘कि ज्ञाने’ इत्यस्मादौणादिके सन्वति डौ कृते किकिस्तदुपपदाद् दिवुधातोरौणादिकः किर्बाहुलकाद् दीर्घश्च (साकम्) (वातस्य) वायोः (ध्राज्याः) गत्या (साकम्) (नश्य) नश्येत्, अत्र व्यत्ययः (निहाकया) नितरां हातुं योग्यया पीडया ॥८७ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे चिकित्सक विद्वन् ! किकिदीविना चाषेण साकं यक्ष्म प्रपत, यथा तस्य वातस्य ध्राज्या साकमयं नश्य, निहाकया साकं दूरीभवेत्, तदर्थं प्रयतस्व ॥८७ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैरौषधसेवनप्राणायामव्यायामै रोगान् निहत्य सुखेन वर्त्तिव्यम् ॥८७ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी औषधांचे सेवन, प्राणायाम व व्यायाम करून रोग नष्ट करावेत आणि सुखी व्हावे.