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श॒तं वो॑ऽअम्ब॒ धामा॑नि स॒हस्र॑मु॒त वो॒ रुहः॑। अधा॑ शतक्रत्वो यू॒यमि॒मं मे॑ऽअग॒दं कृ॑त ॥७६ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

श॒तम्। वः॒। अ॒म्ब॒। धामा॑नि। स॒हस्र॑म्। उ॒त। वः॒। रुहः॑। अध॑। श॒त॒क्र॒त्व॒ इति॑ शतऽक्रत्वः। यू॒यम्। इ॒मम्। मे॒। अ॒ग॒द॒म्। कृ॒त॒ ॥७६ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:12» मन्त्र:76


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्य क्या करके किस को सिद्ध करें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (शतक्रत्वः) सैकड़ों प्रकार की बुद्धि वा क्रियाओं से युक्त मनुष्यो ! (यूयम्) तुम लोग जिन के (शतम्) सैकड़ों (उत) वा (सहस्रम्) हजारहों (रुहः) नाड़ियों के अंकुर हैं, उन ओषधियों से (मे) मेरे (इमम्) इस शरीर को (अगदम्) नीरोग (कृत) करो। (अधा) इसके पश्चात् (वः) आप अपने शरीरों को भी रोगरहित करो, जो (वः) तुम्हारे असंख्य (धामानि) मर्म्म स्थान हैं, उनको प्राप्त होओ। हे (अम्ब) माता ! तू भी ऐसा ही आचरण कर ॥७६ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को चाहिये कि सबसे पहिले ओषधियों का सेवन, पथ्य का आचरण और नियमपूर्वक व्यवहार करके शरीर को रोगरहित करें, क्योंकि इसके विना धर्म्म, अर्थ, काम और मोक्षों का अनुष्ठान करने को कोई भी समर्थ नहीं हो सकता ॥७६ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्याः किं कृत्वा किं साधयेयुरित्याह ॥

अन्वय:

(शतम्) (वः) युष्माकम् (अम्ब) मातः (धामानि) मर्मस्थानानि (सहस्रम्) असंख्याः (उत) अपि (वः) युष्माकम् (रुहः) नाड्यङ्कुराः (अधा) अथ, अत्र निपातस्य च [अष्टा०६.३.१३६] इति दीर्घः (शतक्रत्वः) शतं क्रतवः प्रज्ञाः क्रिया वा येषां तत्सम्बन्द्धौ (यूयम्) (इमम्) देहम् (मे) मम (अगदम्) रोगरहितम् (कृत) कुरुत, अत्र विकरणलुक्। [अयं मन्त्रः शत०७.२.४.२७ व्याख्यातः] ॥७६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे शतक्रत्वः ! यूयं यासां शतमुत सहस्रं रुहः सन्ति, ताभिर्मे ममेमं देहमगदं कृत। अध स्वयं वो देहानगदान् कुरुत। यानि वोऽसंख्यानि धामानि तानि प्राप्नुत। हे अम्ब ! त्वमप्येवमाचर ॥७६ ॥
भावार्थभाषाः - मनुष्याणामिदमादिमं कर्त्तव्यं कर्म्मास्ति यदोषधिसेवनं पथ्याचरणं सुनियमव्यवहरणं च कृत्वा शरीरारोग्यसम्पादनम्। नह्येतेन विना धर्मार्थकाममोक्षाणामनुष्ठानं कर्त्तुं कश्चिदपि शक्नोति ॥७६ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - माणसांनी सर्व प्रथम औषधांचे सेवन, पथ्याचे आचरण व नियमपूर्वक व्यवहार करून शरीर निरोगी बनवावे. कारण त्याशिवाय धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष यांचे अनुष्ठान कोणीही समर्थपणे करू शकत नाही.