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विमु॑च्यध्वमघ्न्या देवयाना॒ऽअग॑न्म॒ तम॑सस्पा॒रम॒स्य। ज्योति॑रापाम ॥७३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वि। मु॒च्य॒ध्व॒म्। अ॒घ्न्याः॒। दे॒व॒या॒ना॒ इति॑ देवऽयानाः। अग॑न्म। तम॑सः। पा॒रम्। अ॒स्य। ज्योतिः॑। आ॒पा॒म॒ ॥७३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:12» मन्त्र:73


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यों को गौ आदि पशुओं को बढ़ा, उन से दूध घी आदि की वृद्धि कर आनन्द में रहना चाहिये, इस विषय को अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्यो ! जैसे तुम लोग (अघ्न्याः) रक्षा के योग्य (देवयानाः) दिव्य भोगों की प्राप्ति की हेतु गौओं को प्राप्त हो, सुन्दर संस्कार किये अन्नों का भोजन करके रोगों से (विमुच्यध्वम्) पृथक् रहते हो, वैसे हम लोग भी बचें। जैसे तुम लोग (तमसः) रात्रि के (पारम्) पार को प्राप्त होते हो, वैसे हम भी (अगन्म) प्राप्त होवें। जैसे तुम लोग (अस्य) इस सूर्य्य के (ज्योतिः) प्रकाश को व्याप्त होते हो, वैसे हम भी (वि) (आपाम) व्याप्त होवें ॥७३ ॥
भावार्थभाषाः - इस मन्त्र में वाचकलुप्तोपमालङ्कार है। मनुष्यों को चाहिये कि गौ आदि पशुओं को भी न मारें और न मरवावें तथा न किसी को मारने दें। जैसे सूर्य्य के उदय से रात्रि निवृत्त होती है, वैसे वैद्यकशास्त्र की रीति से पथ्य अन्नादि पदार्थों का सेवन कर रोगों से बचें ॥७३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यैर्गवादिपशुवृद्धिं कृत्वा पयोघृतादीनि वर्द्धयित्वानन्दितव्यमित्याह ॥

अन्वय:

(वि) (मुच्यध्वम्) त्यजत (अघ्न्याः) हन्तुमयोग्या गाः (देवयानाः) याभिर्देवान् दिव्यान् भोगान् प्राप्नुवन्ति ताः (अगन्म) गच्छेम (तमसः) रात्रेः (पारम्) (अस्य) सूर्य्यस्य (ज्योतिः) प्रकाशम् (आपाम) व्याप्नुयाम। [अयं मन्त्रः शत०७.२.२.२१ व्याख्यातः] ॥७३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मनुष्याः ! यथा यूयं अघ्न्या देवयानाः प्राप्य सुसंस्कृतान्यन्नानि भुक्त्वा रोगेभ्यो विमुच्यध्वम्, तथा वयमपि विमुच्येमहि। यथा यूयं तमसः पारं प्राप्नुत, तथा वयमप्यगन्म। यथा यूयमस्य ज्योतिर्व्याप्नुत, तथा वयमप्यापाम ॥७३ ॥
भावार्थभाषाः - अत्र वाचकलुप्तोपमालङ्कारः। मनुष्या गवादीन् पशून् कदाचिन्न हन्युर्न घातयेयुश्च। यथा सूर्योदयाद् रात्रिर्निवर्त्तते, तथा वैद्यकशास्त्ररीत्या पथ्यान्यन्नानि संसेव्य रोगेभ्यो निवर्त्तन्ताम् ॥७३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - या मंत्रात वाचकलुप्तोपमालंकार आहे. माणसांनी गाई इत्यादी पशूंना कधी मारू नये व इतरांनाही मारू देऊ नये. जसे सूर्याचा उदय झाल्यानंतर रात्रीचा लोप होतो तसे वैद्यकशास्त्राच्या पद्धतीने पथ्य व अन्न इत्यादी पदार्थांचे सेवन केल्यास रोग नष्ट हातात.