अग्ने॑ऽभ्यावर्त्तिन्न॒भि मा॒ निव॑र्त्त॒स्वायु॑षा॒ वर्च॑सा प्र॒जया॒ धने॑न। स॒न्या मे॒धया॑ र॒य्या पोषे॑ण ॥७ ॥
अग्ने॑। अ॒भ्या॒व॒र्त्ति॒न्नित्य॑भिऽआवर्त्तिन्। अ॒भि। मा॒। नि। व॒र्त्त॒स्व॒। आयु॑षा। वर्च॑सा। प्र॒जयेति॑ प्र॒ऽजया॑। धने॑न। स॒न्या। मे॒धया॑। र॒य्या। पोषे॑ण ॥७ ॥
हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर विद्वानों के गुणों का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनर्विद्वद्गुणानुपदिशति ॥
(अग्ने) विद्वन् ! (अभ्यावर्त्तिन्) आभिमुख्येन वर्त्तितुं शीलमस्य तत्सम्बुद्धौ (अभि) (मा) माम् (नि) नितराम् (वर्त्तस्व) (आयुषा) चिरञ्जीवनेन (वर्चसा) अन्नाध्ययनादिना (प्रजया) सन्तानेन (धनेन) (सन्या) सर्वासां विद्यानां संविभागकर्त्र्या (मेधया) प्रज्ञया (रय्या) विद्याश्रिया (पोषेण) पुष्ट्या। [अयं मन्त्रः शत०६.७.३.६ व्याख्यातः] ॥७ ॥