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स॒मु॒द्रे त्वा॑ नृ॒मणा॑ऽअ॒प्स्व᳕न्तर्नृ॒चक्षा॑ऽईधे दि॒वो अ॑ग्न॒ऽऊध॑न्। तृ॒तीये॑ त्वा॒ रज॑सि तस्थि॒वास॑म॒पामु॒पस्थे॑ महि॒षाऽअ॑वर्धन् ॥२० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स॒मु॒द्रे। त्वा॒। नृ॒मणाः॑। नृ॒मना॒ इति॑ नृ॒ऽमनाः॑। अ॒प्स्वित्य॒प्ऽसु। अ॒न्तः। नृ॒चक्षा॒ इति॑ नृ॒चऽक्षाः॑। ई॒धे॒। दि॒वः। अ॒ग्ने॒। ऊध॑न्। तृ॒तीये॑। त्वा॒। रज॑सि। त॒स्थि॒वास॒मिति॑ तस्थि॒ऽवास॑म्। अ॒पाम्। उ॒पस्थ॒ इत्यु॒पऽस्थे॑। म॒हि॒षाः। अ॒व॒र्ध॒न् ॥२० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:12» मन्त्र:20


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी राजा और प्रजा के सम्बन्ध का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (अग्ने) विद्वन् पुरुष ! (नृमणाः) नायक पुरुषों को विचारनेवाला मैं जिस (त्वा) आपको (समुद्रे) आकाश में अग्नि के समान (ईधे) प्रदीप्त करता हूँ (नृचक्षाः) बहुत मनुष्यों का देखनेवाला मैं (अप्सु) अन्न वा जलों के (अन्तः) बीच प्रकाशित करता हूँ (दिवः) सूर्य के प्रकाश के (ऊधन्) प्रातःकाल में प्रकाशित करता हूँ (तृतीये) तीसरे (रजसि) लोक में (तस्थिवांसम्) स्थित हुए सूर्य के तुल्य जिस (त्वा) आप को (अपाम्) जलों के (उपस्थे) समीप (महिषाः) महात्मा विद्वान् लोग (अवर्धन्) उन्नति को प्राप्त करें, सो आप हम लोगों की निरन्तर उन्नति कीजिये ॥२० ॥
भावार्थभाषाः - प्रजा के बीच वर्त्तमान सब श्रेष्ठ पुरुष राजपुरुषों को और राजपुरुष प्रजापुरुषों को नित्य बढ़ाते रहें ॥२० ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुना राजप्रजासम्बन्धमाह ॥

अन्वय:

(समुद्रे) अन्तरिक्षे (त्वा) त्वाम् (नृमणाः) नायकेषु मनो यस्य सः (अप्सु) अन्नेषु जलेषु वा (अन्तः) मध्ये (नृचक्षाः) नृषु मनुष्येषु चक्षो दर्शनं यस्य सः (ईधे) प्रदीपये (दिवः) सूर्यप्रकाशस्य (अग्ने) विद्वान् (ऊधन्) ऊधनि उषसि। ऊध इत्युषसो नामसु पठितम् ॥ (निघं०१.८) (तृतीये) त्रयाणां पूरके (त्वा) त्वाम् (रजसि) लोके (तस्थिवांसम्) तिष्ठन्तम् (अपाम्) जलानाम् (उपस्थे) समीपे (महिषाः) महान्तो विद्वांसः। महिष इति महन्नामसु पठितम् ॥ (निघं०३.३) (अवर्धन्) वर्धेरन्। [अयं मन्त्रः शत०६.७.४.५ व्याख्यातः] ॥२० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे अग्नेः ! नृमणा अहं यं त्वा समुद्रेऽग्निमिवेधे नृचक्षा अहमप्स्वन्तरीधे दिव ऊधन्नीधे, तृतीये रजसि तस्थिवांसं सूर्यमिव यं त्वा त्वामपामुपस्थे महिषा अवर्धन्, स त्वमस्मान् सततं वर्धय ॥२० ॥
भावार्थभाषाः - प्रजासु वर्त्तमानाः सर्वे प्रधानपुरुषा राजवर्गं नित्यं वर्द्धयेयुः, राजपुरुषाः प्रजापुरुषांश्च ॥२० ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - प्रजेतील सर्वश्रेष्ठ पुरुषांनी राजाला उन्नत करावे व राजाने प्रजेला उन्नत करावे.