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अग्रे॑ बृ॒हन्नु॒षसा॑मू॒र्ध्वोऽअ॑स्थान्निर्जग॒न्वान् तम॑सो॒ ज्योति॒षागा॑त्। अ॒ग्निर्भा॒नुना॒ रुश॑ता॒ स्वङ्ग॒ऽआ जा॒तो विश्वा॒ सद्मा॑न्यप्राः ॥१३ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अग्रे॑। बृ॒हन्। उ॒षसा॑म्। ऊ॒र्ध्वः। अ॒स्था॒त्। नि॒र्ज॒ग॒न्वानिति॑ निःऽजग॒न्वान्। तम॑सः। ज्योति॑षा। आ। अ॒गा॒त्। अ॒ग्निः। भा॒नुना॑। रुश॑ता। स्वङ्ग॒ इति॑ सु॒ऽअङ्गः॑। आ। जा॒तः। विश्वा॑। सद्मा॑नि। अ॒प्राः॒ ॥१३ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:12» मन्त्र:13


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी वही विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजन् ! जो आप (अग्रे) पहिले से जैसे सूर्य्य (स्वङ्गः) सुन्दर अवयवों से युक्त (आजातः) प्रकट हुआ (बृहन्) बड़ा (उषसाम्) प्रभातों के (ऊर्ध्वः) ऊपर आकाश में (अस्थात्) स्थिर होता और (रुशता) सुन्दर (भानुना) दीप्ति तथा (ज्योतिषा) प्रकाश से (तमसः) अन्धकार को (निर्जगन्वान्) निरन्तर पृथक् करता हुआ (आगात्) सब लोक-लोकान्तरों को प्राप्त होता है, (विश्वा) सब (सद्मानि) स्थूल स्थानों को (अप्राः) प्राप्त होता है, उसके समान प्रजा के बीच आप हूजिये ॥१३ ॥
भावार्थभाषाः - जो सूर्य्य के समान श्रेष्ठ गुणों से प्रकाशित, सत्पुरुषों की शिक्षा से उत्कृष्ट, बुरे व्यसनों से अलग, सत्य-न्याय से प्रकाशित, सुन्दर अवयववाला, सर्वत्र प्रसिद्ध, सबके सत्कार और जानने योग्य व्यवहारों का ज्ञाता, और दूतों के द्वारा सब मनुष्यों के आशय को जाननेवाला, शुद्ध, न्याय से प्रजाओं में प्रवेश करता है, वही पुरुष राजा होने के योग्य होता है ॥१३ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(अग्रे) प्रथमतः (बृहन्) महत् (उषसाम्) प्रभातानाम् (ऊर्ध्वः) उपर्य्याकाशस्थः (अस्थात्) तिष्ठति (निर्जगन्वान्) निर्गतः सन् (तमसः) अन्धकारात् (ज्योतिषा) प्रकाशेन (आ) (अगात्) प्राप्नोति (अग्निः) पावकः (भानुना) दीप्त्या (रुशता) सुरूपेण (स्वङ्गः) शोभनान्यङ्गानि यस्य सः (आ) (जातः) निष्पन्नः (विश्वा) (सद्मानि) साकाराणि स्थानानि (अप्राः) व्याप्नोति ॥१३ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजन् ! यस्त्वमग्रे यथा सूर्य्यः स्वङ्ग आजातो बृहन्नुषसामूर्ध्वोऽस्थाद् रुशता भानुना ज्योतिषा तमसो निर्जगन्वान् सन्नागाद् विश्वा सद्मान्यप्रास्तद्वत् प्रजायां भव ॥१३ ॥
भावार्थभाषाः - यः सूर्य्यवत् सद्गुणैर्महान् सत्पुरुषाणां शिक्षयोत्कृष्टो दुर्व्यसनेभ्यः पृथग्वर्त्तमानः सत्यन्यायप्रकाशितः सुन्दराङ्गः प्रसिद्धः सर्वैः सत्कर्त्तुं योग्यो विदितवेदितव्यो दूतैः सर्वजनहृदयाशयविच्छुभन्यायेन प्रजा व्याप्नोति, स एव राजा भवितुं योग्यः ॥१३ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो सूर्यासारखा श्रेष्ठ गुणांनी प्रकाशमान व सत्पुरुषांच्या संगतीने व शिक्षणाने उत्कृष्ट बनलेला असेल, वाईट व्यसनांपासून दूर असून सत्य न्यायाने प्रसिद्ध असेल व ज्याचे अवयव सुंदर असतील व जो प्रसिद्ध असून सर्वांनी सत्कार करण्यायोग्य असेल, व्यवहाराचा ज्ञाता व दूतांकडून सर्व माहिती मिळविण्यात चतुर असून प्रजेला योग्य प्रकारे न्याय देणारा असेल तर असा पुरुषच राजा होण्यायोग्य असतो.