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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
फिर पति अपनी स्त्री को क्या-क्या उपदेश करे, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे कन्ये ! जिस (परस्याः) उत्तम कन्या तेरा मैं (अधि) स्वामी हुआ चाहता हूँ सो तू (संवतः) संविभाग को प्राप्त हुए (अवरान्) नीच स्वभावों को (अभ्यातर) उल्लङ्घन और (यत्र) जिस कुल में (अहम्) मैं (अस्मि) हूँ (तान्) उन उत्तम मनुष्यों की (अव) रक्षा कर ॥७१ ॥
भावार्थभाषाः - कन्या को चाहिये कि अपने से अधिक बल और विद्यावाले वा बराबर के पति को स्वीकार करे, किन्तु छोटे वा न्यून विद्यावाले को नहीं। जिस के साथ विवाह करे उसके सम्बन्धी और मित्रों को सब काल में प्रसन्न रक्खे ॥७१ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
पुनः पतिः स्वपत्नीं प्रति किं किमुपदिशेदित्याह ॥
अन्वय:
(परस्याः) प्रकृष्टायाः कन्यायाः (अधि) (संवतः) संविभक्तान् (अवरान्) नीचाननुत्कृष्टगुणस्वभावान् (अभि) (आ) (तर) प्लव (यत्र) (अहम्) (अस्मि) (तान्) (अव)। [अयं मन्त्रः शत०६.६.३.१ व्याख्यातः] ॥७१ ॥
पदार्थान्वयभाषाः - हे कन्ये ! यस्याः परस्यास्तवाहमधिष्ठाता भवितुमिच्छामि, सा त्वं संवतोऽवरानभ्यातर, यत्र कुलेऽहमस्मि तानव ॥७१ ॥
भावार्थभाषाः - कन्यया स्वस्या उत्कृष्टस्तुल्यो वा वरः स्वीकार्य्यः, न नीचः। यस्य पाणिग्रहणं कुर्य्यात्, तस्य सम्बन्धिनो मित्राणि च सर्वदा सन्तोषणीयानि ॥७१ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी
(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - मुलींनी आपल्यापेक्षा अधिक बलवान व विद्यायुक्त किंवा बरोबरीच्या पतीचा स्वीकार करावा. परन्तु न्यून असलेल्या किंवा कमतरता असलेल्या व कमी शिकलेल्याशी विवाह करू नये. ज्याच्याबरोबर विवाह केला त्याच्या नातेवाइकांना व मित्रांना सर्वकाळी प्रसन्न ठेवावे.