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सि॒नी॒वा॒ली सु॑कप॒र्दा सु॑कुरी॒रा स्वौ॑प॒शा। सा तुभ्य॑मदिते म॒ह्योखां द॑धातु॒ हस्त॑योः ॥५६ ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सि॒नी॒वा॒ली। सु॒क॒प॒र्देति॑ सुऽकप॒र्दा। सु॒कु॒री॒रेति॑ सुऽकुरी॒रा। स्वौ॒प॒शेति॑ सुऽऔप॒शा। सा। तुभ्य॑म्। अ॒दि॒ते॒। म॒हि॒। आ। उ॒खाम्। द॒धा॒तु॒। हस्त॑योः ॥५६ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:11» मन्त्र:56


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर भी पूर्वोक्त विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (महि) सत्कार के योग्य (अदिते) अखण्डित आनन्द भोगनेवाली स्त्री ! जो (सिनीवाली) प्रेम से युक्त (सुकपर्दा) अच्छे केशोंवाली (सुकुरीरा) सुन्दर श्रेष्ठ कर्मों को सेवने हारी और (स्वौपशा) अच्छे स्वादिष्ट भोजन के पदार्थ बनानेवाली जिस (तुभ्यम्) तेरे (हस्तयोः) हाथों में (उखाम्) दाल आदि राँधने की बटलोई को (दधातु) धारण करे (सा) उस का तू सेवन कर ॥५६ ॥
भावार्थभाषाः - श्रेष्ठ स्त्रियों को उचित है कि अच्छी शिक्षित चतुर दासियों को रक्खें कि जिससे सब पाक आदि की सेवा ठीक-ठीक समय पर होती रहे ॥५६ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तदेवाह ॥

अन्वय:

(सिनीवाली) प्रेमास्पदाढ्या (सुकपर्दा) सुकेशी (सुकुरीरा) शोभनानि कुरीराण्यलंकृतान्याभूषणानि यस्याः सा। कृञ उच्च ॥ (उणा० ४.३३) इति ईरन् प्रत्ययः। (स्वौपशा) उप समीपे श्यति तनूकरोति यया पाकक्रियया सोपशा तस्या इदं कर्म औपशं तच्छोभनं विद्यते यस्याः सा (सा) (तुभ्यम्) (अदिते) अखण्डितानन्दे (महि) पूज्ये (आ) (उखाम्) सूपादिसाधनीं स्थालीम् (दधातु) (हस्तयोः)। [अयं मन्त्रः शत०६.५.१.१० व्याख्यातः] ॥५६ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे मह्यदिते ! या सिनीवाली सुकपर्दा सुकुरीरा स्वौपशा यस्यै तुभ्यं हस्तयोरुखां दधातु सा, त्वया संसेव्या ॥५६ ॥
भावार्थभाषाः - सतीभिः स्त्रीभिः सुशिक्षिताश्चतुराः परिचारिका रक्षणीयाः। यतः सर्वाः पाकादिसेवा यथाकालं स्युः ॥५६ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - श्रेष्ठ स्त्रियांनी चांगल्या शिक्षित चतुर दासी (पदरी) ठेवाव्यात. त्यामुळे स्वयंपाक इत्यादी सेवा चांगल्या प्रकारे व वेळेवर होत राहील.