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तस्मा॒ऽअं॑र गमाम वो॒ यस्य॒ क्षया॑य॒ जिन्व॑थ। आपो॑ ज॒नय॑था च नः ॥५२ ॥

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पद पाठ

तस्मै॑। अर॑म्। ग॒मा॒म॒। वः॒। यस्य॑। क्षया॑य। जिन्व॑थ। आपः॑। ज॒नय॑थ। च॒। नः॒ ॥५२ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:11» मन्त्र:52


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर उक्त विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (आपः) जलों के समान शान्त स्वभाव से वर्त्तमान स्त्रियो ! तुम लोग (नः) हम लोगों के (क्षयाय) निवासस्थान के लिये (जिन्वथ) तृप्त (च) और (जनयथ) अच्छे सन्तान उत्पन्न करो उन (वः) तुम लोगों को हम लोग (अरम्) सामर्थ्य के साथ (गमाम) प्राप्त होवें। (यस्य) जिस धर्मयुक्त व्यवहार की प्रतिज्ञा करो, उसका पालन करनेवाली होओ और उसी का पालन करनेवाले हम लोग भी होवें ॥५२ ॥
भावार्थभाषाः - जिस पुरुष की जो स्त्री वा जिस स्त्री का जो पुरुष हो, वे आपस में किसी का अनिष्ट-चिन्तन कदापि न करें। ऐसे ही सुख और सन्तानों से शोभायमान हो के धर्म्म से घर के कार्य्य करें ॥५२ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनस्तमेव विषयमाह ॥

अन्वय:

(तस्मै) वक्ष्यमाणाय (अरम्) अलम्। अत्र कपिलकादित्वाल्लत्वम्। (गमाम) गच्छेम (वः) युष्मान् (यस्य) जनस्य (क्षयाय) निवासार्थाय गृहाय (जिन्वथ) प्रीणयत (आपः) जलानीव (जनयथ) उत्पादयत। अत्र अन्येषामपि दृश्यते [अष्टा०६.३.१३७] इति दीर्घः। (च) सुखादीनां समुच्चये (नः) अस्माकम् ॥५२ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे आपः ! जलवद्वर्त्तमाना या यूयं नः क्षयाय जिन्वथ च ता वो युष्मान् वयमरं गमाम यस्य प्रतिज्ञातस्य धर्म्यव्यवहारस्य पालिका भवत तस्यैव वयमपि भवेम ॥५२ ॥
भावार्थभाषाः - पुरुषो यस्याः स्त्रियः पतिर्यस्य या स्त्री पत्नी भवेत् स सा च परस्परस्यानिष्टं कदापि न कुर्य्यात्। एवं सुखसन्तानैरलंकृतौ भूत्वा धर्मेण गृहकृत्यानि कुर्य्याताम् ॥५२ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - पुरुष व स्त्री यांनी आपापसात एकमेकांचे अनिष्ट चिंतन कधीही करू नये. त्यांनी संतानयुक्त बनून धार्मिक बनावे व घरातील कार्य योग्यरीत्या पार पाडून सुखी व्हावे.