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शर्म॑ च॒ स्थो वर्म॑ च॒ स्थोऽछि॑द्रे बहु॒लेऽउ॒भे। व्यच॑स्वती॒ संव॑साथां भृ॒तम॒ग्निं पु॑री॒ष्य᳖म् ॥३० ॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

शर्म्म॑। च॒। स्थः॒। वर्म्म॑। च॒। स्थः॒। अछि॑द्रे॒ऽइत्यछि॑द्रे। ब॒हु॒लेऽइति॑ बहु॒ले। उ॒भेऽइत्यु॒भे। व्यच॑स्वती॒ऽइति॑ व्यच॑स्वती। सम्। व॒सा॒था॒म्। भृ॒तम्। अ॒ग्निम्। पु॒री॒ष्य᳖म् ॥३० ॥

यजुर्वेद » अध्याय:11» मन्त्र:30


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब स्त्री और पुरुष घर में रह के क्या-क्या सिद्ध करें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे स्त्रीपुरुषो ! तुम दोनों (शर्म) गृहाश्रम (च) और उस की सामग्री को प्राप्त हुए (स्थः) हो (वर्म्म) सब ओर से रक्षा (च) और उस के सहायकारी पदार्थों को (उभे) दो (बहुले) बहुत अर्थों को ग्रहण करने हारे (व्यचस्वती) सुख की व्याप्ति से युक्त (अच्छिद्रे) निर्दोष बिजुली और अन्तरिक्ष के समान जिस घर में धर्म, अर्थ के कार्य्य (स्थः) हैं, उस घर में (भृतम्) पोषण करने हारे (पुरीष्यम्) रक्षा करने में उत्तम (अग्निम्) अग्नि को ग्रहण करके (संवसाथाम्) अच्छे प्रकार आच्छादन करके वसो ॥३० ॥
भावार्थभाषाः - गृहस्थ लोगों को चाहिये कि ब्रह्मचर्य्य के साथ सत्कार और उपकारपूर्वक क्रिया की कुशलता और विद्या का ग्रहण कर बहुत द्वारों से युक्त, सब ऋतुओं में सुखदायक, सब ओर की रक्षा और अग्नि आदि साधनों से युक्त घरों को बना के उन में सुखपूर्वक निवास करें ॥३० ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ स्त्रीपुरुषाभ्यां गृहे स्थित्वा किं साधनीयमित्याह ॥

अन्वय:

(शर्म्म) गृहम् (च) तत्सामग्रीम् (स्थः) भवतः (वर्म्म) सर्वतो रक्षणम् (च) तत्सहायान् (स्थः) (अच्छिद्रे) अदोषे (बहुले) बहूनर्थान् लान्ति याभ्यां ते (उभे) द्वे (व्यचस्वती) सुखव्याप्तियुक्ते (सम्) (वसाथाम्) आच्छादयतम् (भृतम्) धृतम् (अग्निम्) (पुरीष्यम्) पालनेषु साधुम्। [अयं मन्त्रः शत०६.३.४.१० व्याख्यातः] ॥३० ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे स्त्रीपुरुषौ ! युवां शर्म्म च प्राप्तौ स्थः वर्म्म चोभे बहुले व्यचस्वती अच्छिद्रे विद्युदन्तरिक्ष इव स्थः। तत्र गृहे पुरीष्यमग्निं गृहीत्वा संवसाथाम् ॥३० ॥
भावार्थभाषाः - गृहस्थैर्ब्रह्मचर्येण सत्करणोपकरणक्रियाकुशलां विद्यां सङ्गृह्य बहुद्वाराणि सर्वर्त्तुसुखप्रदानि सर्वतोभिरक्षान्वितान्यग्न्यादिसाधनोपेतानि गृहाणि निर्माय तत्र सुखेन वसितव्यम् ॥३० ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - गृहस्थांनी ब्रह्मचर्यपूर्वक राहून सर्वांचा सत्कार करावा व सर्वांवर उपकार करावा. त्यांनी कर्मकुशल असावे. विद्येचे ग्रहण करावे व अशी घरे बनवावीत की ती सर्व ऋतूंमध्ये सुखदायक होतील. घरांना पुष्कळ दरवाजे असावेत. घरे अग्नी इत्यादी साधनांनी युक्त असावीत. सर्वांचे रक्षण होईल अशा घरात सुखाने निवास करावा.