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योगे॑योगे त॒वस्त॑रं॒ वाजे॑वाजे हवामहे। सखा॑य॒ऽइन्द्र॑मू॒तये॑ ॥१४ ॥

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पद पाठ

योगे॑योग॒ इति योगे॑ऽयोगे। त॒वस्त॑र॒मिति॑ त॒वःऽत॑रम्। वाजे॑वाज॒ इति॒ वाजे॑ऽवाजे। ह॒वा॒म॒हे॒। सखा॑यः। इन्द्र॑म्। ऊ॒तये॑ ॥१४ ॥

यजुर्वेद » अध्याय:11» मन्त्र:14


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

प्रजाजन कैसे पुरुष को राजा मानें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे (सखायः) परस्पर मित्रता रखने हारे लोगो ! जैसे हम लोग (ऊतये) रक्षा आदि के लिये (योगेयोगे) जिस-जिस में युक्त होते हैं, उस-उस तथा (वाजेवाजे) सङ्ग्राम-सङ्ग्राम के बीच (तवस्तरम्) अत्यन्त बलवान् (इन्द्रम्) परमैश्वर्ययुक्त पुरुष को राजा (हवामहे) मानते हैं, वैसे ही तुम लोग भी मानो ॥१४ ॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य परस्पर मित्र हो के एक दूसरे की रक्षा के लिये अत्यन्त बलवान् धर्मात्मा पुरुष को राजा मानते हैं, वे सब विघ्नों से अलग हो के सुख की उन्नति कर सकते हैं ॥१४ ॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

प्रजाजनाः कीदृशं राजानमङ्गीकुर्य्युरित्याह ॥

अन्वय:

(योगेयोगे) युञ्जते यस्मिन् यस्मिन् (तवस्तरम्) अत्यन्तं बलयुक्तम्। तव इति बलनामसु पठितम् ॥ (निघं०२.९) ततस्तरप् (वाजेवाजे) सङ्ग्रामे सङ्ग्रामे (हवामहे) आह्वयामहे (सखायः) परस्परं सुहृदः सन्तः (इन्द्रम्) परमैश्वर्य्ययुक्तं राजानम् (ऊतये) रक्षणाद्याय ॥१४ ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे सखायः ! यथा वयमूतये योगेयोगे वाजेवाजे तवस्तरमिन्द्रं हवामहे, तथा यूयमप्येतमाह्वयत ॥१४ ॥
भावार्थभाषाः - ये परस्परं मित्रा भूत्वाऽन्योन्यस्य रक्षार्थं बलिष्ठं धार्मिकं राजानं स्वीकुर्वन्ति, ते निर्विघ्नाः सन्तः सुखमेधन्ते ॥१४ ॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे परस्पर मित्र बनतात व एकमेकांच्या रक्षणासाठी अत्यंत बलवान धार्मिक पुरुषाला राजा मानतात त्यांची सर्व विघ्ने दूर होतात व सुख वाढते.