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सोम॑स्य॒ त्विषि॑रसि॒ तवे॑व मे॒ त्विषि॑भूर्यात्। अ॒ग्नये॒ स्वाहा॒ सोमा॑य॒ स्वाहा॑ सवि॒त्रे स्वाहा॒ सर॑स्वत्यै॒ स्वाहा॑ पू॒ष्णे स्वाहा॒ बृह॒स्पत॑ये॒ स्वाहेन्द्रा॑य॒ स्वाहा॒ घोषा॑य॒ स्वाहा॒ श्लोका॑य॒ स्वाहाशा॑य॒ स्वाहा॒ भगा॑य॒ स्वाहा॑र्य॒म्णे स्वाहा॑ ॥५॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

सोम॑स्य। त्विषिः॑। अ॒सि॒। तवे॒वेति तव॑ऽइव। मे॒। त्विषिः॑। भू॒या॒त्। अ॒ग्नये॑। स्वाहा॑। सोमा॑य। स्वाहा॑। स॒वि॒त्रे। स्वाहा॑। सर॑स्वत्यै। स्वाहा॑। पू॒ष्णे। स्वाहा॑। बृह॒स्पत॑ये। स्वाहा॑। इन्द्रा॑य। स्वाहा॑। घोषा॑य। स्वाहा॑। श्लोका॑य। स्वाहा॑। अꣳशा॑य। स्वाहा॑। भगा॑य। स्वाहा॑। अ॒र्य्य॒म्णे स्वाहा॑ ॥५॥

यजुर्वेद » अध्याय:10» मन्त्र:5


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

राजा लोगों को चाहिये कि सत्यवादी धर्मात्मा राजाओं के समान अपने सब काम करें और क्षुद्राशय, लोभी, अन्यायी तथा लम्पटी के तुल्य कदापि न हों, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजन् ! जैसे आप (सोमस्य) ऐश्वर्य्य के (त्विषिः) प्रकाश करनेहारे (असि) हैं, वैसा मैं भी होऊँ, जिससे (तवेव) आप के समान (मे) मेरा (त्विषिः) विद्याओं का प्रकाश होवे, जैसे आप ने (अग्नये) बिजुली आदि के लिये (स्वाहा) सत्य वाणी और प्रियाचरणयुक्त विद्या (सोमाय) ओषधि जानने के लिये (स्वाहा) वैद्यक की पुरुषार्थयुक्त विद्या (सवित्रे) सूर्य्य को समझने के लिये (स्वाहा) भूगोल विद्या (सरस्वत्यै) वेदों का अर्थ और अच्छी शिक्षा जाननेवाली वाणी के लिये (स्वाहा) व्याकरणादि वेदों के अङ्गों का ज्ञान (पूष्णे) प्राण तथा पशुओं की रक्षा के लिये (स्वाहा) योग और व्याकरण की विद्या (बृहस्पतये) बड़े प्रकृति आदि के पति ईश्वर को जानने के लिये (स्वाहा) ब्रह्मविद्या (इन्द्राय) इन्द्रियों के स्वामी जीवात्मा के बोध के लिये (स्वाहा) विचारविद्या (घोषाय) सत्य और प्रियभाषण से युक्त वाणी के लिये (स्वाहा) सत्य उपदेश और व्याख्यान देने की विद्या (श्लोकाय) तत्त्वज्ञान का साधक शास्त्र, श्रेष्ठ काव्य, गद्य और पद्य आदि छन्द रचना के लिये (स्वाहा) तत्त्व और काव्यशास्त्र आदि की विद्या (अंशाय) परमाणुओं के समझने के लिये (स्वाहा) सूक्ष्म पदार्थों का ज्ञान (भगाय) ऐश्वर्य्य के लिये (स्वाहा) पुरुषार्थज्ञान (अर्य्यम्णे) न्यायाधीश होने के लिये (स्वाहा) राजनीति विद्या को ग्रहण करते हैं, वैसे मुझे भी करना अवश्य है ॥५॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यों को ऐसी इच्छा करनी चाहिये कि जैसे सत्यवादी धर्मात्मा राजा लोगों के गुण, कर्म, स्वभाव होते हैं, वैसे ही हम लोगों के भी होवें ॥५॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

राजन्यैराप्तराज्ञामेवाऽनुकरणं कार्यं नेतरेषां क्षुद्राशयलुब्धान्यायाजितेन्द्रियाणामिति उपदिश्यते ॥

अन्वय:

(सोमस्य) ऐश्वर्य्यस्य (त्विषिः) ज्योतिः (असि) (तवेव) यथा भवतस्तथा (मे) मम (त्विषिः) विज्ञानप्रकाशः (भूयात्) (अग्नये) विद्युदादये (स्वाहा) सत्यवाक्प्रियाचरणयुक्ता विद्या (सोमाय) औषधविज्ञानाय (स्वाहा) वैद्यकपुरुषार्थविद्या (सवित्रे) सूर्य्यविज्ञानाय (स्वाहा) ज्योतिर्विद्या (सरस्वत्यै) वेदार्थसुशिक्षाविज्ञापिकायै वाचे (स्वाहा) व्याकरणाद्यङ्गविद्या (पूष्णे) प्राणपशुपालनाय (स्वाहा) योगव्यवहारविद्या (बृहस्पतये) बृहतां प्रकृत्यादीनां पत्युरीश्वरस्य विज्ञानाय (स्वाहा) ब्रह्मविद्या (इन्द्राय) इन्द्रियाधिष्ठातुर्जीवस्य बोधाय (स्वाहा) विवेकविद्या (घोषाय) सत्प्रियभाषणादियुक्तायै वाण्यै (स्वाहा) तथ्योपदेशे वक्तृत्वविद्या (श्लोकाय) तत्त्वसङ्घातसत्काव्यगद्यपद्यछन्दोनिर्माणादिविज्ञानाय (स्वाहा) तत्त्वकाव्यशास्त्रादिविद्या (अंशाय) परमाण्ववगमाय (स्वाहा) सूक्ष्मपदार्थविद्या (भगाय) ऐश्वर्याय (स्वाहा) पुरुषार्थविद्या (अर्य्यम्णे) न्यायाधीशत्वाय (स्वाहा) राजनीतिविद्या ॥ अयं मन्त्रः (शत०५.३.५.३-९) व्याख्यातः ॥५॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राजन् ! यथा त्वं सोमस्य त्विषिरसि तथाऽहमपि भवेयम्। यतस्तवेव मे त्विषिर्भूयाद् यथा भवताऽग्नये स्वाहा सोमाय स्वाहा सवित्रे स्वाहा सरस्वत्यै स्वाहा पूष्णे स्वाहा बृहस्पतये स्वाहेन्द्राय स्वाहा घोषाय स्वाहा श्लोकाय स्वाहांऽशाय स्वाहा भगाय स्वाहाऽर्य्यम्णे च स्वाहा गृह्यते तथा मयापि गृह्यते ॥५॥
भावार्थभाषाः - मनुष्यैरिदमाशंसितव्यं यथाऽऽप्तानां राज्ञां शुभगुणस्वभावाः सन्ति, तथैव नो भूयासुरिति ॥५॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - सर्व माणसांनी ही इच्छा बाळगावी की सत्यवादी, धर्मात्मा राजे लोकांचे जसे गुण, कर्म, स्वभाव असतात तसेच आमचे सर्वांचेही व्हावेत.