वांछित मन्त्र चुनें

स्यो॒नासि॑ सु॒षदा॑सि क्ष॒त्रस्य॒ योनि॑रसि। स्यो॒नामासी॑द सु॒षदा॒मासी॑द क्ष॒त्रस्य॒ योनि॒मासी॑द ॥२६॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

स्यो॒ना। अ॒सि॒। सु॒षदा॑। सु॒सदेति॑ सु॒ऽसदा॑। अ॒सि॒। क्ष॒त्रस्य॑। योनिः॑। अ॒सि॒। स्यो॒नाम्। आ। सी॒द॒। सु॒षदा॑म्। सु॒सदा॒मिति॑ सु॒ऽसदा॑म्। आ। सी॒द॒। क्ष॒त्रस्य॑। योनि॑म्। आ। सी॒द॒ ॥२६॥

यजुर्वेद » अध्याय:10» मन्त्र:26


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

स्त्रियों का न्याय, विद्या और उनको शिक्षा स्त्री लोग ही करें और पुरुषों के लिये पुरुष, इस विषय का उपदेश अगले मन्त्र में किया है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राणी ! जिसलिये आप (स्योना) सुखरूप (असि) हैं, (सुषदा) सुन्दर व्यवहार करनेवाली (असि) हैं, (क्षत्रस्य) राज्य के न्याय के (योनिः) करनेवाली (असि) हैं, इसलिये आप (स्योनाम्) सुखकारक अच्छी शिक्षा में (आसीद) तत्पर हूजिये, (सुषदाम्) अच्छे सुख देनेहारी विद्या को (आसीद) अच्छे प्रकार प्राप्त कीजिये तथा कराइये और (क्षत्रस्य) क्षत्रिय कुल की (योनिम्) राजनीति को (आसीद) सब स्त्रियों को जनाइये ॥२६॥
भावार्थभाषाः - राजाओं की स्त्रियों को चाहिये कि सब स्त्रियों के लिये न्याय और अच्छी शिक्षा देवें और स्त्रियों का न्यायादि पुरुष न करें, क्योंकि पुरुषों के सामने स्त्री लज्जित और भययुक्त होकर यथावत् बोल वा पढ़ ही नहीं सकती ॥२६॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

स्त्रीणां न्यायो विद्यासुशिक्षे च स्त्रीभिरेव कार्य्ये नराणां नरैश्चेत्याह ॥

अन्वय:

(स्योना) सुखरूपा (सुषदा) या शोभने व्यवहारे सीदति सा (असि) (क्षत्रस्य) राज्यन्यायस्य (योनिः) गृहे न्यायकर्त्री (असि) (स्योनाम्) सुखकारिकाम् (आ) (सीद) (सुषदाम्) शुभसुखदात्रीम् (आ) (सीद) (क्षत्रस्य) क्षत्रियकुलस्य (योनिम्) (आ) (सीद) ॥ अयं मन्त्रः (शत०५.४.४.२-४) व्याख्यातः ॥२६॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे राज्ञि ! यतस्त्वं स्योनासि सुषदासि क्षत्रस्य योनिं राजनीतिमासीद ॥२६॥
भावार्थभाषाः - राजपत्नी सर्वासां स्त्रीणां न्यायसुशिक्षे च सदैव कुर्य्यात्। नैतासामेते पुरुषैः कारयितव्ये। कुतः? पुरुषाणां समीपे स्त्रियो लज्जिता भीताश्च भूत्वा यथावद् वक्तुमध्येतुं च न शक्नुवन्त्यतः ॥२६॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - राजस्त्रियांनी सर्व स्त्रियांना चांगले शिक्षण द्यावे. त्यांना न्याय द्यावा, स्त्रियांचा न्याय पुरुषांनी करू नये, कारण स्त्री पुरुषासमोर लज्जित व भयभीत होऊ शकते. ती योग्य प्रकारे त्यांच्यासमोर बोलू किंवा वाचू शकत नाही.