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इय॑द॒स्यायु॑र॒स्यायु॒र्मयि॑ धेहि॒ युङ्ङ॑सि॒ वर्चो॑ऽसि॒ वर्चो॒ मयि॑ धे॒ह्यूर्ग॒स्यूर्जं॒ मयि॑ धेहि। इन्द्र॑स्य वां वीर्य॒कृतो॑ बा॒हूऽअ॑भ्यु॒पाव॑हरामि ॥२५॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

इय॑त्। अ॒सि॒। आयुः॑। अ॒सि॒। आयुः॑। मयि॑। धे॒हि॒। युङ्। अ॒सि॒। वर्चः॑। अ॒सि॒। वर्चः॑। मयि॑। धे॒हि॒। ऊर्क्। अ॒सि॒। ऊर्ज॑म्। मयि॑। धे॒हि॒। इन्द्र॑स्य। वा॑म्। वी॒र्य॒कृत॒ इति वीर्य॒ऽकृतः॑। बा॒हू इति॑ बा॒हू। अ॒भ्यु॒पाव॑हरा॒मीत्य॑भिऽ उ॒पाव॑हरामि ॥२५॥

यजुर्वेद » अध्याय:10» मन्त्र:25


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हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्य ईश्वर की उपासना क्यों करे, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे परमेश्वर ! आप (इयत्) इतना (आयुः) जीवन (मयि) मुझ में (धेहि) धरिये, जिससे आप (युङ्) सब को समाधि करानेवाले (असि) हैं, (वर्चः) स्वयं प्रकाशस्वरूप (असि) हैं, इस कारण (वर्चः) योगाभ्यास से प्रकट हुए तेज को (मयि) मुझ में (धेहि) धरिये। आप (ऊर्क्) अत्यन्त बलवान् (असि) हैं, इसलिये (ऊर्जम्) बल पराक्रम को (मयि) मेरे में (धेहि) धारण कीजिये। हे राज और प्रजा के पुरुषो ! (वीर्य्यकृतः) बल-पराक्रम को बढ़ानेहारे (इन्द्रस्य) ऐश्वर्य्य और परमात्मा के आश्रय से (वाम्) तुम राजप्रजाओं के (बाहू) बल और पराक्रम को (अभ्युपावहरामि) सब प्रकार तुम्हारे समीप में स्थापन करता हूँ ॥२५॥
भावार्थभाषाः - जो मनुष्य अपने हृदय में ईश्वर की उपासना करते हैं, वे सुन्दर जीवन आदि के सुखों को भोगते हैं और कोई भी पुरुष ईश्वर के आश्रय के विना पूर्ण बल और पराक्रम को प्राप्त नहीं हो सकता ॥२५॥
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संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

मनुष्यैः किमर्थं ब्रह्मोपासनीयमित्युपदिश्यते ॥

अन्वय:

(इयत्) एतावत्परिमाणम् (असि) (आयुः) जीवनम् (असि) (आयुः) (मयि) जीवात्मनि (धेहि) (युङ्) समाधाता (असि) (वर्चः) स्वप्रकाशम् (असि) (वर्चः) (मयि) (धेहि) (ऊर्क्) बलवान् (असि) (ऊर्जम्) (मयि) (धेहि) (इन्द्रस्य) परमैश्वर्य्यस्य (वाम्) युवयो राजप्रजाजनयोः (वीर्य्यकृतः) यो वीर्य्यं करोति तस्य (बाहू) बाधते याभ्यां बलवीर्य्याभ्यां तौ (अभ्युपावहरामि) अभितः सामीप्येऽर्वाक् स्थापयामि ॥ अयं मन्त्रः (शत०५.४.३.२५-२७) व्याख्यातः ॥२५॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे ब्रह्मन् ! त्वमायुरसीयदायुर्मयि धेहि। त्वं युङ्ङसि वर्चोऽसि योगजं वर्चो मयि धेहि। त्वमूर्गस्यूर्जं मयि धेहि। हे राजप्रजाजनौ ! वीर्य्यकृत इन्द्रस्येश्वरस्याश्रयेण वां युवयोर्बाहू बलवीर्य्ये अहमभ्युपावहरामि ॥२५॥
भावार्थभाषाः - य आत्मस्थं ब्रह्मोपासते ते शोभनं जीवनादिकमश्नुवते। नहि केनचिदीश्वरस्याश्रयमन्तरा पूर्णो बलपराक्रमौ लभ्येते ॥२५॥
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मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जी माणसे अन्तःकरणात ईश्वराचे ध्यान (उपासना) करतात त्यांचे जीवन सुंदर व सुखमय असते. कोणताही माणूस ईश्वराच्या आश्रयाखेरीज पूर्ण बलवान व पराक्रमी बनू शकत नाही.