वृष्ण॑ऽऊ॒र्मिर॑सि राष्ट्र॒दा रा॒ष्ट्रं मे॑ देहि॒ स्वाहा॑ वृष्ण॑ऽऊर्मिर॑सि राष्ट्र॒दा रा॒ष्ट्रम॒मुष्मै॑ देहि वृषसे॒नो᳖ऽसि राष्ट्र॒दा रा॒ष्ट्रं मे॑ देहि॒ स्वाहा॑ वृषसे॒नो᳖ऽसि राष्ट्र॒दा रा॒ष्ट्रम॒मुष्मै॑ देहि ॥२॥
वृष्णः॑। ऊ॒र्मिः। अ॒सि॒। रा॒ष्ट्र॒दा इति॑ राष्ट्र॒ऽदाः। रा॒ष्ट्रम्। मे॒। दे॒हि॒। स्वाहा॑। वृष्णः॑। ऊ॒र्मिः। अ॒सि॒। रा॒ष्ट्र॒दा इति॑ राष्ट्रऽदाः। रा॒ष्ट्रम्। अ॒मुष्मै॑। दे॒हि॒। वृ॒ष॒से॒न इति॑ वृषऽसे॒नः। अ॒सि॒। रा॒ष्ट्र॒दा इति॑ राष्ट्र॒ऽदाः। रा॒ष्ट्रम्। मे॒। दे॒हि॒। स्वाहा॑। वृ॒ष॒से॒न इति॑ वृषऽसे॒नः। अ॒सि॒। रा॒ष्ट्र॒दा इति॑ राष्ट्र॒ऽदाः। रा॒ष्ट्रम्। अ॒मुष्मै॑। दे॒हि॒ ॥२॥
हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
अब विद्वान् लोग कैसे राजा से क्या-क्या मागें, यह उपदेश अगले मन्त्र में कहा है ॥
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
अथ विद्वांसः कीदृशं राजानं प्रति किं किं याचेरन्नित्याह ॥
(वृष्णः) सुखवर्षकस्य विज्ञानस्य (ऊर्मिः) प्रापकः। अर्त्तेरुच्च। (उणा०४.४४) इति ऋधातोर्मिः (असि) (राष्ट्रदाः) राष्ट्रं ददातीति (राष्ट्रम्) राज्यम् (मे) मह्यम् (देहि) (स्वाहा) सत्यया नीत्या (वृष्णः) सुखवर्षकस्य राज्यस्य (ऊर्मिः) ज्ञाता (असि) (राष्ट्रदाः) राज्यप्रदाः (राष्ट्रम्) न्यायप्रकाशितम् (अमुष्मै) राज्यपालकाय (देहि) (वृषसेनः) वृषा बलयुक्ता सेना यस्य सः (असि) (राष्ट्रदाः) राज्ञां कर्मप्रदाः (राष्ट्रम्) राज्यम् (मे) प्रत्यक्षाय मह्यम् (देहि) (स्वाहा) सुष्ठु वाचा (वृषसेनः) हृष्टपुष्टसेनः (असि) (राष्ट्रदाः) (राष्ट्रम्) (अमुष्मै) परोक्षाय जनाय (देहि) ॥ अयं मन्त्रः (शत०५.३.४.५-६) व्याख्यातः ॥२॥