हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती
राजा और प्रजापुरुषों को उचित है कि ईश्वर के समान न्यायाधीश होकर आपस में एक-दूसरे की रक्षा करें, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥
संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती
राजप्रजाजनैरीश्वरवद् वर्त्तित्वा परस्परेषां रक्षणं विधेयमित्याह ॥
(सोमस्य) ऐश्वर्यस्य (त्विषिः) दीप्तिः (असि) (तवेव) (मे) (त्विषिः) (भूयात्) (मृत्योः) मरणात् (पाहि) (ओजः) पराक्रमयुक्तः (असि) (सहः) बलवान् (असि) (अमृतम्) मरणधर्मरहितम् (असि) ॥ अयं मन्त्रः (शत०५.४.१.११-१४) व्याख्यातः ॥१५॥