वांछित मन्त्र चुनें

दक्षि॑णा॒मारो॑ह त्रि॒ष्टुप् त्वा॑वतु बृ॒हत्साम॑ पञ्चद॒श स्तोमो॑ ग्री॒ष्मऽऋ॒तुः क्ष॒त्रं द्रवि॑णम् ॥११॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

दक्षि॑णाम्। आ। रो॒ह॒। त्रि॒ष्टुप्। त्रि॒स्तुबिति॑ त्रि॒ऽस्तुप्। त्वा॒। अ॒व॒तु॒। बृ॒हत्। साम॑। प॒ञ्च॒द॒श इति॑ पञ्चऽद॒शः। स्तोमः॑। ग्री॒ष्मः। ऋ॒तुः। क्ष॒त्रम्। द्रवि॑णम् ॥११॥

यजुर्वेद » अध्याय:10» मन्त्र:11


बार पढ़ा गया

हिन्दी - स्वामी दयानन्द सरस्वती

फिर वह सभापति राजा क्या करके क्या करे, यह विषय अगले मन्त्र में कहा है ॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वान् राजन् ! जिस (त्वा) आप को (त्रिष्टुप्) इस नाम के छन्द से सिद्ध विज्ञान (बृहत्) बड़ा (साम) सामवेद का भाग (पञ्चदशः) पाँच प्राण अर्थात् प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान; पाँच इन्द्रिय अर्थात् श्रोत्र, त्वचा, नेत्र, रसना और घ्राण; पाँच भूत अर्थात् जल, भूमि, अग्नि, वायु और आकाश, इन पन्द्रह की पूर्त्ति करनेहारा (स्तोमः) स्तुति के योग्य (ग्रीष्मः) (ऋतुः) ग्रीष्म ऋतु (क्षत्रम्) क्षत्रियों के धर्म का रक्षक क्षत्रियकुलरूप और (द्रविणम्) राज्य से प्रकट हुआ धन (अवतु) प्राप्त हो। वह आप (दक्षिणाम्) दक्षिण दिशा में (आरोह) प्रसिद्ध हूजिये और शत्रुओं को जीतिये ॥११॥
भावार्थभाषाः - जो राजा विद्या को प्राप्त हुआ क्षत्रियकुल को बढ़ावे, उस का तिरस्कार शत्रुजन कभी न कर सकें ॥११॥
बार पढ़ा गया

संस्कृत - स्वामी दयानन्द सरस्वती

पुनः स सभेशः किं कृत्वा किं कुर्यादित्याह ॥

अन्वय:

(दक्षिणाम्) दिशम् (आ) (रोह) (त्रिष्टुप्) एतच्छन्दोऽभिहितं विज्ञानम् (त्वा) त्वाम् (अवतु) प्राप्नोतु (बृहत्) महत् (साम) सामवेदभागः (पञ्चदशः) प्राणेन्द्रियभूतानां पञ्चदशानां पूरकः (स्तोमः) स्तोतुं योग्यः (ग्रीष्मः) (ऋतुः) (क्षत्रम्) क्षत्रियधर्मरक्षकं कुलम् (द्रविणम्) राज्योद्भवं द्रव्यम् ॥ अयं मन्त्रः (शत०५.४.१.४) व्याख्यातः ॥११॥

पदार्थान्वयभाषाः - हे विद्वन् राजन् ! यं त्वा त्रिष्टुप् छन्दो बृहत्साम पञ्चदश स्तोमो ग्रीष्म ऋतुः क्षत्रं द्रविणञ्चावतु, स त्वं दक्षिणां दिशमारोह शत्रून् विजयस्व ॥११॥
भावार्थभाषाः - यो राजा प्राप्तविद्यः क्षत्रियकुलं वर्धयेत्, स एव शत्रुभिः कदापि न तिरस्क्रियेत ॥११॥
बार पढ़ा गया

मराठी - माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - जो राजा विद्यायुक्त बनून क्षत्रिय कुलाची वृद्धी करत असेल त्याचा तिरस्कार शत्रूसुद्धा करू शकत नाही.