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उ꣡द्द्यामे꣢꣯षि꣣ र꣡जः꣢ पृ꣣थ्व꣢हा꣣ मि꣡मा꣢नो अ꣣क्तु꣡भिः꣢ । प꣢श्य꣣ञ्ज꣡न्मा꣢नि सूर्य ॥६३८॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)उद्द्यामेषि रजः पृथ्वहा मिमानो अक्तुभिः । पश्यञ्जन्मानि सूर्य ॥६३८॥
उ꣢त् । द्याम् । ए꣣षि । र꣡जः꣢꣯ । पृ꣣थु꣢ । अ꣡हा꣢꣯ । अ । हा꣣ । मि꣡मा꣢꣯नः । अ꣣क्तु꣡भिः꣢ । प꣡श्य꣢꣯न् । ज꣡न्मा꣢꣯नि । सू꣣र्य ॥६३८॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अगले मन्त्र में पुनः सूर्य और परमात्मा का वर्णन है।
हे (सूर्य) चराचर में अन्तर्यामी जगदीश्वर ! आप (अक्तुभिः) प्रलय-रात्रियों के साथ (अहा) सृष्टिरूप दिनों को (मिमानः) रचते हुए तथा (जन्मानि) प्राणियों के पूर्वापर जन्मों को (पश्यन्) जानते हुए (पृथु) यशोमय (रजः) लोक (द्याम्) प्रकाशपूर्ण ब्रह्माण्ड को (उद् एषि) सञ्चालित करते हो ॥ भौतिक सूर्य भी (अक्तुभिः) रात्रियों के साथ (अहा) दिनों को (मिमानः) रचता हुआ और (जन्मानि) उत्पन्न पदार्थों को (पश्यन्) प्रकाशित करता हुआ (पृथु) विस्तीर्ण (रजः) लोक (द्याम्) द्यौ में (उदेति) उदित है ॥१२॥ इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है ॥१२॥
सौर लोक में परमात्मा से सञ्चालित सूर्य ही दिन-रात, पक्ष, मास, ऋतु, अयन, संवत्सर आदि के चक्र का प्रवर्तन करता है और सबको प्रकाशित करता है। परमात्मा भी प्रलयरात्रि के अनन्तर सृष्टिरूप ब्राह्म दिन को रचता है और मनुष्यों के जन्म-जन्म में किये हुए शुभाशुभ फल प्रदान करता है ॥१२॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
पुनरपि सूर्यः परमात्मा च वर्ण्यते।
हे (सूर्य) चराचरान्तर्यामिन् सूर्यसदृश जगदीश्वर ! त्वम् (अक्तुभिः) प्रलयरात्रिभिः सह (अहा) अहानि सृष्टिरूपाणि दिनानि (मिमानः) निर्मिमाणः। अनुपसृष्टोऽपि ‘माङ् माने शब्दे च’ इति धातुर्निर्माणार्थे दृश्यते। (जन्मानि) प्राणिनां पूर्वापराणि जनूंषि (पश्यन्) जानन् (पृथु) यशोमयम्। प्रथ प्रख्याने। (रजः) लोकम् (द्याम्) दीप्तिमयं ब्रह्माण्डम् (उद् एषि) उद्गमयसि, सञ्चालयसीत्यर्थः। ‘इण् गतौ’ अत्र ण्यर्थगर्भः ॥ भौतिकः सूर्योऽपि (अक्तुभिः) रात्रिभि सह, (अहा) अहानि (मिमानः) निर्मिमाणः (जन्मानि) जातानि वस्तूनि (पश्यन्) प्रकाशयन् (पृथु) विस्तीर्णम् (रजः) लोकम् (द्याम्) दिवम्, विस्तीर्णे लोके दिवि इत्यर्थः, (उदेति) उद्गतोऽस्ति ॥१२॥२ अत्र श्लेषालङ्कारः ॥१२॥
सौरलोके परमात्मना सञ्चालितः सूर्य एवाहोरात्रपक्षमासऋत्वयनसंवत्सरचक्रं प्रवर्तयति सर्वाणि प्रकाशयति च। परमात्माऽपि प्रलयरात्र्यनन्तरं सृष्टिरूपं ब्राह्मं दिवसं रचयति, जन्मनि जन्मनि कृतानि जनानां शुभाशुभकर्माणि च पश्यन् तेभ्यः शुभाशुभानि फलानि ददाति ॥१२॥
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