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इ꣡न्द्र꣢स्य꣣ नु꣢ वी꣣꣬र्या꣢꣯णि꣣ प्र꣡वो꣢चं꣣ या꣡नि꣢ च꣣का꣡र꣢ प्रथ꣣मा꣡नि꣢ व꣣ज्री꣢ । अ꣢ह꣣न्न꣢हि꣣म꣢न्व꣣प꣡स्त꣢तर्द꣣ प्र꣢ व꣣क्ष꣡णा꣢ अभिन꣣त्प꣡र्व꣢तानाम् ॥६१२॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)इन्द्रस्य नु वीर्याणि प्रवोचं यानि चकार प्रथमानि वज्री । अहन्नहिमन्वपस्ततर्द प्र वक्षणा अभिनत्पर्वतानाम् ॥६१२॥
इ꣡न्द्र꣢꣯स्य । नु । वी꣣र्या꣢꣯णि । प्र । वो꣣चम् । या꣡नि꣢꣯ । च꣣का꣡र꣢ । प्र꣣थमा꣡नि꣢ । व꣣ज्री꣢ । अ꣡ह꣢꣯न् । अ꣡हि꣢꣯म् । अ꣡नु꣢꣯ । अ꣣पः꣢ । त꣣तर्द । प्र꣢ । व꣣क्ष꣡णाः꣢ । अ꣣भिनत् । प꣡र्व꣢꣯तानाम् ॥६१२॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अगले मन्त्र का देवता इन्द्र है। इन्द्र नाम से परमात्मा, राजा आदि के पराक्रमों का वर्णन है।
प्रथम—परमात्मा, सूर्य और विद्युत् के पक्ष में। मैं (इन्द्रस्य) वीर परमात्मा, पदार्थों को अवयव रूप में विछिन्न करनेवाले सूर्य और परमैश्वर्य की साधनभूत विद्युत् के (नु) शीघ्र (वीर्याणि) क्रमशः सृष्टि के उत्पत्ति-स्थिति-संहाररूप, आकर्षण-प्रकाशन आदि रूप और भूयान, जलयान, अन्तरिक्षयान तथा विविध यन्त्रों के चलाने रूप वीरता के कर्मों का (प्र वोचम्) वर्णन करता हूँ, (यानि प्रथमानि) जिन उत्कृष्ट कर्मों को, वह (वज्री) शक्तिधारी (चकार) करता है। उन्हीं वीरता के कर्मों में से एक का कथन करते हैं—वह परमात्मा, वह सूर्य और वह विद्युत् (अहिम्) अन्तरिक्ष में स्थित बादल का (अहन्) संहार करता है, (अपः) बादल में स्थित जलों को (अनु ततर्द) तोड़-तोड़कर नीचे गिराता है, (पर्वतानाम्) पहाड़ों की (वक्षणाः) नदियों को (प्र अभिनत्) बर्फ तोड़-तोड़कर प्रवाहित करता है ॥ द्वितीय—राष्ट्र के पक्ष में। मैं (इन्द्रस्य) शत्रुविदारक राजा के (नु) शीघ्र ही (वीर्याणि) शत्रुविजय, राष्ट्रनिर्माण आदि वीरतापूर्ण कर्मों को (प्र वोचम्) भली-भाँति वर्णित करता हूँ, (यानि प्रथमानि) जिन श्रेष्ठ कर्मों को (वज्री) तलवार, बन्दूक, तोप, गोले आदि शस्त्रास्त्रों से युक्त वह (चकार) करता है। वह (अहिम्) साँप के समान टेढ़ी चालवाले, विषधर, राष्ट्र की उन्नति में बाधक शत्रु का (अहन्) संहार करता है, (अपः) जलों के समान उमड़नेवाले शत्रु-दलों को (ततर्द) छीलता है, (पर्वतानाम्) किलों की (वक्षणाः) सेनाओं को (अभिनत्) छिन्न-भिन्न करता है ॥११॥ इस मन्त्र में श्लेषालङ्कार है। अहन्, अनुततर्द, प्राभिनत् इन अनेक क्रियाओं में एक कारक का योग होने से दीपकालङ्कार भी है ॥११॥
जैसे परमेश्वर सूर्य द्वारा अथवा आकाशीय बिजली द्वारा मेघ का संहार कर रुके हुए जलों को नीचे बरसाता और नदियों को बहाता है, वैसे ही राष्ट्र का राजा विघ्नकारी शत्रुओं को मार कर, किलों में भी स्थित सेनाओं को हरा कर राष्ट्र में सब ऐश्वर्यों को प्रवाहित करे ॥११॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अथेन्द्रो देवता। इन्द्रनाम्ना परमात्मनृपत्यादेर्वीर्याणि वर्ण्यन्ते।
प्रथमः—परमात्मसूर्यविद्युत्परः। अहम् (इन्द्रस्य) वीरस्य परमात्मनः, पदार्थविच्छेदकस्य सूर्यस्य, परमैश्वर्यसाधनभूतायाः विद्युतो वा (नु) शीघ्रम् (वीर्याणि) सृष्ट्युत्पत्तिस्थितिसंहारादिरूपाणि, आकर्षणप्रकाशनादिरूपाणि, भूजलान्तरिक्षयानयन्त्रसञ्चालनरूपाणि वा वीरकर्माणि (प्रवोचम्) वर्णयामि, (यानि प्रथमानि) यानि उत्कृष्टानि कर्माणि सः (वज्री) शक्तिधरः (चकार२) करोति। तेषामेव वीरकर्मणामन्यतमम् आह—स परमात्मा, स सूर्यः, सा विद्युद् वा (अहिम्) अन्तरिक्षस्थं मेघम्। अहिरिति मेघनाम। निघं० १।१०। (अहन्) हन्ति, (अपः) मेघस्थानि उदकानि (अनु ततर्द) तर्दनेन अधः पातयति (पर्वतानाम्) गिरीणाम् (वक्षणाः३) नदीः। वक्षणाः इति नदीनामसु पठितम्। निघं० १।१३। (प्र अभिनत्) हिमभेदनेन प्रवाहयति। अत्र प्रवोचम्, अहन्, अनुततर्द, प्र अभिनत् इति लुङ्-लङ्-लिट्प्रयोगाः सामान्यकाले विज्ञेयाः ‘छन्दसि लुङ्लङ्लिटः। अ० ३।४।६’ इति पाणिनिप्रामाण्यात् ॥ अथ द्वितीयः—राष्ट्रपरः। अहम् (इन्द्रस्य) शत्रुविदारकस्य नृपतेः (नु) सद्यः (वीर्याणि) वीरतापूर्णानि कर्माणि शत्रुविजयराष्ट्रनिर्माणादीनि (प्रवोचम्) प्रकृष्टतया वर्णयामि, (यानि प्रथमानि) यानि श्रेष्ठानि कर्माणि (वज्री) असिभुशुण्डीशतघ्नीगोलाकादिशस्त्रास्त्रयुक्तः सः (चकार) कृतवान् करोति च। सः (अहिम्) अहिवत् कुटिलगामिनं विषधरं राष्ट्रोन्नतौ बाधकं शत्रुम् (अहन्) हन्ति, (अपः) जलवत् प्रवहणशीलानि शत्रुदलानि, (ततर्द) तृणत्ति, (पर्वतानाम्) दुर्गाणाम् (वक्षणाः) सेनाः। नदीवाचिनः शब्दाः सेनावाचका अपि भवन्ति। अभिनत् भिनत्ति ॥११॥४
यथा परमेश्वरः सूर्यद्वाराऽऽकाशीयविद्युद्द्वारा वा मेघं हत्वाऽवरुद्धानि जलान्यधः पातयति नदींश्च प्रवाहयति, तथैव राष्ट्रस्य राजा विघ्नकारिणः शत्रून् हत्वा दुर्गस्था अपि सेनाः पराजित्य राष्ट्रे सकलान्यैश्वर्याणि प्रवाहयेत् ॥११॥
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