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प꣡रि꣢ स्वा꣣ना꣢स꣣ इ꣡न्द꣢वो꣣ म꣡दा꣢य ब꣣र्ह꣡णा꣢ गि꣣रा꣢ । म꣡धो꣢ अर्षन्ति꣣ धा꣡र꣢या ॥४८५॥

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स्वर-रहित-मन्त्र

परि स्वानास इन्दवो मदाय बर्हणा गिरा । मधो अर्षन्ति धारया ॥४८५॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

प꣡रि꣢꣯ । स्वा꣣ना꣡सः꣢ । इ꣡न्द꣢꣯वः । म꣡दा꣢꣯य । ब꣣र्ह꣡णा꣢ । गि꣣रा꣢ । म꣡धो꣢꣯ । अ꣣र्षन्ति । धा꣡र꣢꣯या ॥४८५॥

सामवेद » - पूर्वार्चिकः » मन्त्र संख्या - 485 | (कौथोम) 5 » 2 » 5 » 9 | (रानायाणीय) 5 » 2 » 9


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अगले मन्त्र में आनन्द-रसों का वर्णन है।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (मधो) मधुर आनन्द से भरपूर सोम परमात्मन् ! (बर्हणा) श्रेष्ठ (गिरा) स्तुति वाणी के द्वारा (स्वानासः) आपसे झरते हुए (इन्दवः) आनन्द-रस (मदाय) मेरे उत्साह के लिए (धारया) धारा रूप में (परि अर्षन्ति) मेरे अन्तः करण में प्रवेश कर रहे हैं ॥९॥

भावार्थभाषाः -

भक्ति में लीन मन से स्तोता जन जब परमात्मा की आराधना करते हैं, तब उन्हें परम आनन्द की अनुभूति होती है ॥९॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अथानन्दरसान् वर्णयति।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (मधो) मधुरानन्द सोम परमात्मन् ! अत्र पादादित्वात् आद्युदात्तः सम्बुद्धिस्वरः। (बर्हणा) बर्हणया श्रेष्ठया। बर्ह प्राधान्ये, भ्वादिः। बर्हणा प्रातिपदिकात् तृतीयैकवचने ‘सुपां सुलुक्०’ इति पूर्वसवर्णदीर्घः। (गिरा) वेदवाचा (स्वानासः) सुवानाः, त्वत्तः अभिषूयमाणाः (इन्दवः) आनन्दरसाः (मदाय) मम हर्षाय, उत्साहायेत्यर्थः (धारया) धारारूपेण (परि अर्षन्ति) मदीयं मानसं प्रविशन्ति। ऋषिर्गत्यर्थः ॥९॥

भावार्थभाषाः -

भक्तिलीनेन मनसा स्तोतारो यदा परमात्मानमाराध्नुवन्ति तदा तैः परमानन्दोऽनुभूयते ॥९॥

टिप्पणी: १. ऋ० ९।१०।४, ‘स्वानास’, ‘मधो’ इत्यत्र ‘सुवानास’, ‘सुता’ इति पाठः। साम० ११२२।


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