वांछित मन्त्र चुनें
आर्चिक को चुनें

Notice: Undefined index: lan in /home/j2b3a4c/public_html/pages/samveda.php on line 166
देवता: अग्निः ऋषि: शुनःशेप आजीगर्तिः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः काण्ड:

वि꣡श्वे꣢भिरग्ने अ꣣ग्नि꣡भि꣢रि꣣मं꣢ य꣣ज्ञ꣢मि꣣दं꣡ वचः꣢꣯ । च꣡नो꣢ धाः सहसो यहो ॥१६१७॥

(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)
स्वर-रहित-मन्त्र

विश्वेभिरग्ने अग्निभिरिमं यज्ञमिदं वचः । चनो धाः सहसो यहो ॥१६१७॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

वि꣡श्वे꣢꣯भिः । अ꣣ग्ने । अग्नि꣡भिः꣣ । इ꣣म꣢म् । य꣣ज्ञ꣢म् । इ꣣द꣢म् । व꣡चः꣢꣯ । च꣡नः꣢꣯ । धाः꣣ । सहसः । यहो ॥१६१७॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 1617 | (कौथोम) 8 » 1 » 1 » 1 | (रानायाणीय) 17 » 1 » 1 » 1


0 बार पढ़ा गया

हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

प्रथम मन्त्र में परमात्मा से प्रार्थना की गयी है।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (अग्ने) जगन्नायक परमात्मन् ! आप (विश्वेभिः) सब (अग्निभिः) संकल्प, उत्साह, महत्वाकाञ्क्षा, वीरता आदि की अग्नियों के साथ (इमम्) इस (यज्ञम्) हमारे जीवन यज्ञ में आओ। (इदम्) इस (वचः) वचन को सुनो। हे (सहसः यहो) बल के पुत्र अर्थात् अतिबली परमात्मन् ! आप हमें (चनः) आनन्द का अमृत (धाः) प्रदान करो ॥१॥

भावार्थभाषाः -

अग्निहीन मनुष्य मृत के तुल्य होता है। इसलिए हृदय में अग्नियों को प्रज्वलित कर आशावाद के साथ कर्मयोग का सहारा लेकर विजयश्री सबको प्राप्त करनी चाहिए ॥१॥

0 बार पढ़ा गया

संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

तत्रादौ परमात्मा प्रार्थ्यते।

पदार्थान्वयभाषाः -

हे (अग्ने) जगन्नायक परमात्मन् ! त्वम् (विश्वेभिः) सर्वैः(अग्निभिः) संकल्पोत्साहमहत्त्वाकाङ्क्षावीरतादीनाम् अर्चिभिः, (इमम्) एतम् (यज्ञम्) अस्मदीयं जीवनयज्ञम् आयाहीति शेषः। (इदम्) एतत् (वचः) वचनं, त्वं शृणु। हे(सहसः यहो) बलस्य पुत्रवद् विद्यमान, अतिशयबलवन् ! त्वम् अस्मभ्यम् (चनः) आनन्दामृतम् (धाः देहि) ॥१॥२

भावार्थभाषाः -

निरग्निर्मानवो मृतवद् भवति। अतो हृदयेऽग्नीन् प्रज्वाल्याऽऽशावादेन सह कर्मयोगमाश्रित्य विजयश्रीः सर्वैराप्तव्या ॥१॥



Notice: Undefined index: lan in /home/j2b3a4c/public_html/pages/samveda.php on line 609