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वा꣣जी꣡ वाजे꣢꣯षु धीयतेऽध्व꣣रे꣢षु꣣ प्र꣡ णी꣢यते । वि꣡प्रो꣢ य꣣ज्ञ꣢स्य꣣ सा꣡ध꣢नः ॥१४७८॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)वाजी वाजेषु धीयतेऽध्वरेषु प्र णीयते । विप्रो यज्ञस्य साधनः ॥१४७८॥
वा꣣जी꣢ । वा꣡जे꣢꣯षु । धी꣣यते । अध्वरे꣡षु꣢ । प्र । नी꣣यते । वि꣡प्रः꣢꣯ । वि । प्रः꣣ । यज्ञ꣡स्य꣢ । सा꣡ध꣢꣯नः ॥१४७८॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
आगे फिर वही विषय है।
(वाजी) बलवान् अग्नि नामक परमेश्वर (वाजेषु) देवासुरसंग्रामों में (धीयते) अन्तरात्मा में धारण किया जाता है और (अध्वरेषु) हिंसारहित व्यवहारों में (प्रणीयते) आगे लाया जाता है। वह (विप्रः) विशेष पूर्णता प्रदान करनेवाला तथा (यज्ञस्य साधनः) जीवन-यज्ञ को सफल करनेवाला है ॥२॥
जो परमेश्वर सबको सिद्धि देनेवाला है, उसकी सब लोगों को मनोयोगपूर्वक आराधना करनी चाहिए ॥२॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अथ पुनरपि तमेव विषयमाह।
(वाजी) बलवान् अग्निः परमेश्वरः (वाजेषु) देवासुरसंग्रामेषु (धीयते) अन्तरात्मनि धार्यते, अपि च (अध्वरेषु) हिंसारहितेषु व्यवहारेषु (प्रणीयते) अग्रे क्रियते। असौ (विप्रः) विशेषेण परिपूरकः (यज्ञस्य साधनः) जीवनयज्ञस्य सफलयिता च वर्तते ॥२॥२
यः परमेश्वरः सर्वेषां सिद्धिप्रदाता विद्यते स सर्वैर्जनैर्मनोयोगेन समाराधनीयः ॥२॥
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