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देवता: अग्निः ऋषि: विश्वामित्रो गाथिनः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः काण्ड:

हो꣡ता꣢ दे꣣वो꣡ अम꣢꣯र्त्यः पु꣣र꣡स्ता꣢देति मा꣣य꣡या꣢ । वि꣣द꣡था꣢नि प्रचो꣣द꣡य꣢न् ॥१४७७॥

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स्वर-रहित-मन्त्र

होता देवो अमर्त्यः पुरस्तादेति मायया । विदथानि प्रचोदयन् ॥१४७७॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

हो꣡ता꣢꣯ । दे꣣वः꣢ । अ꣡म꣢꣯र्त्यः । अ । म꣣र्त्यः । पु꣡रस्ता꣢त् । ए꣣ति । माय꣡या꣢ । वि꣣द꣡था꣢नि । प्र꣣चोद꣡य꣢न् । प्र꣣ । चोद꣡य꣢न् ॥१४७७॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 1477 | (कौथोम) 6 » 3 » 15 » 1 | (रानायाणीय) 13 » 5 » 3 » 1


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

प्रथम मन्त्र में परमेश्वर का वर्णन है।

पदार्थान्वयभाषाः -

(होता) कार्यसिद्धि को देनेवाला, (देवः) दिव्य गुणोंवाला, (अमर्त्यः) अमर अग्निनामक परमेश्वर (विदथानि) ज्ञानों, कर्मों और उच्च विचारों को (प्रचोदयन्) अन्तरात्मा में प्रेरित करता हुआ (मायया) ऋतम्भरा प्रज्ञा के साथ (पुरस्तात्) सम्मुख (एति) आता है ॥१॥

भावार्थभाषाः -

योगाभ्यास द्वारा योगी लोग योगसिद्धि पाकर परमात्मा को बिलकुल सामने देखते हैं ॥१॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

तत्रादौ परमेश्वरं वर्णयति।

पदार्थान्वयभाषाः -

(होता) कार्यसिद्धिप्रदाता, (देवः) दिव्यगुणाः, (अमर्त्यः)अविनश्वरः अग्निः परमेश्वरः (विदथानि) ज्ञानानि कर्माणि उच्चविचारांश्च (प्रचोदयन्) अन्तरात्मनि प्रेरयन् (मायया) ऋतम्भरया प्रज्ञया सह (पुरस्तात्) सम्मुखम् (एति) आगच्छति ॥१॥२

भावार्थभाषाः -

योगाभ्यासेन योगिजना योगसिद्ध्या परमात्मानं पुरत एव पश्यन्ति ॥१॥



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