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ए꣣त꣢मु꣣ त्यं꣢꣫ दश꣣ क्षि꣢पो꣣ ह꣡रि꣢ꣳ हिन्वन्ति꣣ या꣡त꣢वे । स्वा꣣युधं꣢ म꣣दि꣡न्त꣢मम् ॥१२७३॥

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स्वर-रहित-मन्त्र

एतमु त्यं दश क्षिपो हरिꣳ हिन्वन्ति यातवे । स्वायुधं मदिन्तमम् ॥१२७३॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ए꣣त꣢म् । उ꣣ । त्य꣢म् । द꣡श꣢꣯ । क्षि꣡पः꣢꣯ । ह꣡रि꣢꣯म् । हि꣣न्वन्ति । या꣡त꣢꣯वे । स्वा꣣युध꣢म् । सु꣣ । आयुध꣢म् । म꣣दि꣡न्त꣢मम् ॥१२७३॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 1273 | (कौथोम) 5 » 2 » 3 » 8 | (रानायाणीय) 10 » 2 » 1 » 8


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हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अगले मन्त्र में फिर देहधारी जीवात्मा का विषय है।

पदार्थान्वयभाषाः -

(एतम् उ) इस (त्यम्) उस (स्वायुधम्) उत्तम शस्त्रास्त्रों से युक्त (मदिन्तमम्) अतिशय उत्साहयुक्त (हरिम्) मनुष्य को (दश क्षिपः) दस प्रेरक प्राण वा दस प्रेरक इन्द्रियाँ (यातवे) गति करने के लिए अर्थात् ज्ञानसम्पादन तथा पुरुषार्थ करने के लिए (हिन्वन्ति) प्रेरित करती हैं ॥८॥

भावार्थभाषाः -

जैसे चाबुकें घोड़े को चलने के लिए प्रेरित करती हैं, वैसे ही दस प्राण वा दस इन्द्रियाँ देहधारी जीवात्मा को कर्म करने के लिए प्रेरित करती हैं ॥८॥ इस खण्ड में आत्मशुद्धि, परमात्मानुभव और मोक्ष के विषयों का वर्णन होने से इस खण्ड की पूर्व खण्ड के साथ सङ्गति है ॥ दशम अध्याय में द्वितीय खण्ड समाप्त ॥

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संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अथ पुनर्देहधारिजीवात्मविषयमाह।

पदार्थान्वयभाषाः -

(एतम् उ) इमं खलु (त्यम्) तम् (स्वायुधम्) शोभनशस्त्रास्त्रोपेतम्, (मदिन्तमम्) अतिशयेन उत्साहभाजम् (हरिम्) मानवम्। [हरय इति मनुष्यनामसु पठितम्। निघं० २।३।] (दश क्षिपः) प्रेरकाः दश प्राणाः, दश प्रेरकाणि इन्द्रियाणि वा (यातवे) यातुम्, ज्ञानं सम्पादयितुं पुरुषार्थं च कर्तुम् (हिन्वन्ति) प्रेरयन्ति ॥८॥

भावार्थभाषाः -

यथा क्षेपकाः प्रतोदा अश्वं यातुं प्रेरयन्ति तथा दश प्राणा दशेन्द्रियाणि वा देहधारिणं जीवात्मानं कार्यं कर्तुं प्रेरयन्ति ॥८॥ अस्मिन् खण्डे आत्मशुद्धेः परमात्मानुभवस्य मोक्षस्य च वर्णनादेतत्खण्डस्य पूर्वखण्डेन संगतिरस्ति ॥

टिप्पणी: १. ऋ० ९।१५।८, ‘मृजन्ति॑ स॒प्त धी॒तयः॑’ इति द्वितीयः पादः।


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