वांछित मन्त्र चुनें
आर्चिक को चुनें

Notice: Undefined index: lan in /home/j2b3a4c/public_html/pages/samveda.php on line 166

ए꣣ष꣢ उ꣣ स्य꣡ पु꣢रुव्र꣣तो꣡ ज꣢ज्ञा꣣नो꣢ ज꣣न꣢य꣣न्नि꣡षः꣢ । धा꣡र꣢या पवते सु꣣तः꣢ ॥१२६५॥

(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)
स्वर-रहित-मन्त्र

एष उ स्य पुरुव्रतो जज्ञानो जनयन्निषः । धारया पवते सुतः ॥१२६५॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

ए꣣षः꣢ । उ꣣ । स्यः꣢ । पु꣣रुव्रतः꣢ । पु꣣रु । व्रतः꣢ । ज꣣ज्ञानः꣢ । ज꣣न꣡य꣢न् । इ꣡षः꣢꣯ । धा꣡र꣢꣯या । प꣣वते । सुतः꣢ ॥१२६५॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 1265 | (कौथोम) 5 » 2 » 2 » 10 | (रानायाणीय) 10 » 1 » 2 » 10


0 बार पढ़ा गया

हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

आगे फिर उसी विषय का वर्णन है।

पदार्थान्वयभाषाः -

(एषः उ) यह (स्यः) वह (पुरुव्रतः) ब्रह्मचर्याश्रम में बहुत व्रत पालन करनेवाला, (जज्ञानः) आचार्य से नवीन जन्म ग्रहण करता हुआ छात्र (सुतः) उत्पन्न होकर अर्थात् स्नातक बनकर (इषः) प्राप्त विद्याएँ (जनयन्) दूसरों को पढ़ाता हुआ (धारया) वाणी से (पवते) उन्हें पवित्र करे ॥१०॥

भावार्थभाषाः -

आचार्य के मुख से सब विद्याएँ पढ़कर छात्र पवित्र आचरणवाला द्विज होकर स्नातक बना हुआ दूसरों को भी सब विद्याएँ पढ़ाता हुआ उन्हें पवित्र आचरणवाला करे ॥१०॥ इस खण्ड में परमात्मा, जीवात्मा तथा आचार्य से प्राप्त होनेवाले द्वितीय जन्म के विषय का वर्णन होने से इस खण्ड की पूर्व खण्ड के साथ सङ्गति जाननी चाहिए ॥ दशम अध्याय में प्रथम खण्ड समाप्त ॥

0 बार पढ़ा गया

संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अथ पुनस्तमेव विषयं वर्णयति।

पदार्थान्वयभाषाः -

(एषः उ) अयं खलु (स्यः) सः (पुरुव्रतः) ब्रह्मचर्याश्रमे बहुव्रतपालकः (जज्ञानः) आचार्याद् नवं जन्म गृह्णानः छात्रः (सुतः) उत्पन्नः सन् (इषः) प्राप्ता विद्याः (जनयन्) अन्येषाम् अध्यापयन् (धारया) वाचा। [धारा इति वाङ्नाम। निघं० १।११।] (पवते) तान् पुनातु ॥१०॥

भावार्थभाषाः -

आचार्यमुखात् सर्वा विद्या अधीत्य छात्रः पवित्राचरणो द्विजो भूत्वा स्नातकः सन्नन्यानपि सकला विद्या अध्यापयन् पवित्राचरणान् विदध्यात् ॥१०॥ अस्मिन् खण्डे परमात्मनो जीवात्मन आचार्यात् प्राप्तव्यस्य द्वितीयजन्मनश्च विषयस्य वर्णनादेतत्खण्डस्य पूर्वखण्डेन संगतिर्वेद्या ॥

टिप्पणी: १. ऋ० ९।३।१०।


Notice: Undefined index: lan in /home/j2b3a4c/public_html/pages/samveda.php on line 609