Notice: Undefined index: lan in /home/j2b3a4c/public_html/pages/samveda.php on line 166
ए꣣ष꣢ दे꣣वो꣡ वि꣢प꣣न्यु꣢भिः꣣ प꣡व꣢मान ऋता꣣यु꣡भिः꣢ । ह꣢रि꣣र्वा꣡जा꣢य मृज्यते ॥१२६०॥
(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)एष देवो विपन्युभिः पवमान ऋतायुभिः । हरिर्वाजाय मृज्यते ॥१२६०॥
ए꣡षः꣢ । दे꣣वः꣢ । वि꣣पन्यु꣡भिः꣢ । प꣡व꣢꣯मानः । ऋ꣣तायु꣡भिः꣢ । ह꣡रिः꣢꣯ । वा꣡जा꣢꣯य । मृ꣣ज्यते ॥१२६०॥
हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
आगे फिर जीवात्मा का विषय है।
(एषः) यह (देवः) विजय की इच्छावाला, (पवमानः) पुरुषार्थी, (हरिः) कर्मफलभोग के लिए एक शरीर से दूसरे शरीर में ले जाया गया जीवात्मा (ऋतायुभिः) सत्य आचरणवाले (विपन्युभिः) परमात्म-स्तोता विद्वानों द्वारा (वाजाय) बल देने के लिए (मृज्यते) शुद्ध किया जाता है ॥५॥
मानव-शरीर को प्राप्त जीवात्मा सत्याचारी परमात्म-स्तोताओं की सङ्गति करके स्वयं को उन्नत करे ॥५॥
संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार
अथ पुनर्जीवात्मविषयमाह।
(एषः) अयम् (देवः) विजिगीषुः। [दीव्यतेर्विजिगीषाकर्मणो रूपम्।] (पवमानः) पुरुषार्थी (हरिः) कर्मफलभोगाय देहाद् देहान्तरं हृतो जीवात्मा (ऋतायुभिः२) सत्याचरणैः (विपन्युभिः) परमात्मस्तोतृभिः विद्वद्भिः (वाजाय) बलप्रदानाय (मृज्यते) पवित्रीक्रियते ॥५॥
मानवदेहं प्राप्तो जीवात्मा परमात्मस्तोतॄणां सत्याचरणवतां विदुषां सङ्गतिं कृत्वा स्वमुन्नयेत् ॥५॥
Notice: Undefined index: lan in /home/j2b3a4c/public_html/pages/samveda.php on line 609
