वांछित मन्त्र चुनें
आर्चिक को चुनें

Notice: Undefined index: lan in /home/j2b3a4c/public_html/pages/samveda.php on line 166
देवता: पवमानः सोमः ऋषि: उचथ्य आङ्गिरसः छन्द: गायत्री स्वर: षड्जः काण्ड:

अ꣢व्या꣣ वा꣢रैः꣣ प꣡रि꣢ प्रि꣣य꣡ꣳ ह꣢꣯रिꣳ हिन्व꣣न्त्य꣡द्रि꣢भिः । प꣡व꣢मानं मधु꣣श्चु꣡त꣢म् ॥१२०७॥

(यदि आप उपरोक्त फ़ॉन्ट ठीक से पढ़ नहीं पा रहे हैं तो कृपया अपने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करें)
स्वर-रहित-मन्त्र

अव्या वारैः परि प्रियꣳ हरिꣳ हिन्वन्त्यद्रिभिः । पवमानं मधुश्चुतम् ॥१२०७॥

मन्त्र उच्चारण
पद पाठ

अ꣡व्याः꣢꣯ । वा꣡रैः꣢꣯ । प꣡रि꣢꣯ । प्रि꣣य꣢म् । ह꣡रि꣢꣯म् । हि꣣न्वन्ति । अ꣡द्रि꣢꣯भिः । अ । द्रि꣣भिः । प꣡व꣢꣯मानम् । म꣣धुश्चु꣡त꣢म् । म꣣धु । श्चु꣡त꣢꣯म् ॥१२०७॥

सामवेद » - उत्तरार्चिकः » मन्त्र संख्या - 1207 | (कौथोम) 5 » 1 » 5 » 3 | (रानायाणीय) 9 » 4 » 1 » 3


0 बार पढ़ा गया

हिन्दी : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अगले मन्त्र में यह कथन है कि कैसे परमेश्वर का किस प्रकार साक्षात्कार करना चाहिए।

पदार्थान्वयभाषाः -

(प्रियम्) उपासकों के प्यारे, (हरिम्) दुःखों को हरनेवाले, (पवमानम्) हृदय को पवित्र करनेवाले, (मधुश्चुतम्) आनन्द को परिस्रुत करनेवाले सोम परमात्मा को, उपासक जन (अव्याः वारैः) चित्तभूमि के विक्षेप का निवारण करनेवाले उपायों से और (अद्रिभिः) ध्यानरूप सिल-बट्टों से (परिहिन्वन्ति) अपने आत्मा में प्रेषित करते हैं अर्थात् उसका साक्षात्कार करते हैं ॥३॥

भावार्थभाषाः -

योग के विघ्नरूप व्याधि, स्त्यान, संशय आदि तथा दुःख, दौर्मनस्य आदि का निवारण करके ध्यान द्वारा परमात्मा का साक्षात्कार करके सबको आनन्द-रस की धारा में स्नान करना चाहिए ॥३॥

0 बार पढ़ा गया

संस्कृत : आचार्य रामनाथ वेदालंकार

अथ कीदृशः परमेश्वरः कथं साक्षात्करणीय इत्याह।

पदार्थान्वयभाषाः -

(प्रियम्) उपासकानां प्रेमास्पदम्, (हरिम्) दुःखानां हर्तारम्, (पवमानम्) हृदयं पवित्रयन्तम्, (मधुश्चुतम्) आनन्दस्राविणम् सोमं परमात्मानम्, उपासकाः जनाः (अव्याः वारैः) चित्तभूमेः विक्षेपनिवारणोपायैः (अद्रिभिः) ध्यानरूपैः पेषणसाधनैश्च (परिहिन्वन्ति) स्वात्मनि प्रेषयन्ति, परिपश्यन्तीत्यर्थः ॥३॥

भावार्थभाषाः -

योगविघ्नभूतान् व्याधिस्त्यानसंशयादीन् दुःखदौर्मनस्यादींश्च विनिवार्य ध्यानद्वारा परमात्मानं साक्षात्कृत्य सर्वैरानन्दवारिधारायां स्नातव्यम् ॥३॥

टिप्पणी: १. ऋ० ९।५०।३, ‘अव्या वारैः’ इत्यत्र ‘अव्यो॒ वारे॒’ इति पाठः।


Notice: Undefined index: lan in /home/j2b3a4c/public_html/pages/samveda.php on line 609